Book Title: Ayurved Sahitya ke Jain Manishi Author(s): Harichandra Jain Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 2
________________ अर्थात् जैसे पर्वत से जल प्रवाहित होता है वैसे ही शरीर से धर्म प्रवाहित होता है । अतएव धर्मयुक्त शरीर की यत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिये । आयुर्वेद साहित्य के जैन मनीषा शरीरं धर्मसंयुक्तं रक्षणीयं प्रयत्नतः । शरीराच्छ्रवते धर्मः पर्वतात् सलिलं यथा ॥ शरीर रक्षा में सावधान जैन साधु भी कदाचित् रोगग्रस्त हो जाते थे । वे व्याधियों के उपचार की विधिवत् कला जानते थे । निशीथचूर्णी में वैद्यकशास्त्र के पंडितों को दृष्टपाठी कहा है । जैन ग्रन्थों में अनेक ऐसे वैद्यों का वर्णन मिलता है, जो कायचिकित्सा तथा शल्य चिकित्सा में अति निपुण होते थे । वे युद्ध में जाकर शल्य चिकित्सा करते थे, ऐसा वर्णन प्राप्त होता है । आयुर्वेद साहित्य के जैन मनीषी - साधु एवं गृहस्थ दोनों वर्गों के थे । हरिणेगमेषी द्वारा महावीर के गर्भ का साहरण चिकित्सा शास्त्र की दृष्टि से एक अपूर्व तथा विचारणीय घटना है । आचार्य पद्मनंदी ने अपनी पंचविशतिका में श्रावक को मुनियों के लिये औषध - दान देने की चर्चा की है इस सन्दर्भ से यह स्पष्ट है कि श्रावक जैन धर्म की समस्त दृष्टियों के अनुकूल औषध व्यवस्था करते थे । इस सम्बन्ध में जैन आयुर्वेद साहित्य के मनीषी विद्वान ही उनके परामर्श दाता होते थे । यहाँ आयुर्वेद साहित्य के जैनी मनीषी विद्वानों की परम्परा का ऐतिहासिक दृष्टि से विवेचन करना आवश्यक है। इस ऐतिहासिक परम्परा का वैदिक आयुर्वेद साहित्य से कोई मतभेद नहीं है । भगवान आदिनाथ से भगवान महावीर स्वामी तक के आयुर्वेद साहित्य के जैन मनीषियों का कोई लिखित साहित्य नहीं है, किन्तु भगवान महावीर के निर्वाण के उपरान्त जब से शास्त्र लिखने की परम्परा प्रारम्भ हुई, उसके बाद जो आचार्य हुये उन्होंने जो आयुर्वेद साहित्य लिखा है, उसका विवरण अवश्य आज भी प्राप्त है, और इनमें अधिकांश का नामोल्लेख शास्त्रों में विकीर्ण मिलता है । आचार्य नाम मुझे अब तक आयुर्वेद साहित्य के जिन जैन मनीषियों का नाम, उनके द्वारा लिखित कृति तथा काल का ज्ञान हुआ है, उसे मैं नीचे एक सूची के द्वारा व्यक्त कर रहा हूँ; जिससे सम्पूर्ण जैन आचार्यों का एक साथ ज्ञान हो सके : ग्रन्थ १- श्रुतकीर्ति २- कुमारसेन ३- वीरसेन २३९ ४- पूज्यपाद पात्रस्वामी ५ - सिद्धसेन दशरथ गुरु ६- मेघपाद Jain Education International वैद्यामृत काल १२वीं० श० For Private & Personal Use Only विषय विष एवं ग्रह शालाक्यतंत्र बालरोग बालरोग www.jainelibrary.orgPage Navigation
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