Book Title: Auppatik Sutra Author(s): Chandmal Karnavat Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 4
________________ SNRN. EENNELS आदि के सुविस्तृत वर्णन में देवों के सुन्दर शरीर, वस्त्र, आभूषण, अंगोपांग रूप सज्जा का उल्लेख हुआ है। आलंकारिकतापूर्ण चित्रोपम काव्यमयी शैली में किया गया वर्णन मनोहारी बना है। यह प्रस्तुतीकरण देवों की ऋद्धि समृद्धि को दर्शाने वाला तथा उनके चिहों को बताने वाला है। अन्य भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी एवं वैमानिक देवों का वर्णन यथातथ्य किया गया है। जनसमुदाय भगवान के कल्याणकारी दर्शन, वन्दन, शंका समाधान का स्वर्ण अवसर पाकर आह्लादित था। अनेक राजा, राजकुमार, आरक्षक-अधिकारी, सुभटों, सैनिकों, मांडलिक, तलवर, कौटुम्बिक, श्रेष्ठी, सार्थवाह, तत्त्व निर्णय, संयम ग्रहण श्रावक धर्म स्वीकार करने की उत्कृष्ट भावनाओं से भरकर हाथी, घोड़े, पालकी आदि वाहनों पर प्रस्थित हुए। महाराज कूणिक, जनसमुदाय, देव सभी न अति दूर न अति निकट भगवान की सेवा में प्रस्तुत होकर पर्युपासना करने लगे। सुविस्तृत मनोहारी वर्णन क्यों? सहज ही प्रश्न खड़ा होता है कि लोकोत्तर शास्त्र में, आप्तवाणी रूप आगम में ऐसा कलात्मक भौतिक वस्तु जगत् का वर्णन क्यों किया गया? शास्त्रकार बताते हैं कि वस्तुजगत का वर्णन यथातथ्य रूप में प्रस्तुत करना निर्दोष है। (दशवैकालिक अ.७) भगवान जहां पधारे, उन स्थानों का दर्शनार्थी राजादि का यथातथ्य वर्णन परिचय की दृष्टि से दोषयुक्त नहीं माना गया। साथ ही राजा-महाराजा, देव-देवियों की इतनी ऋद्धि-समृद्धि भी त्यागियों के चरणों में झुकती है, यह दिखाना भी शास्त्रकार का अभीष्ट रहा होगा। अर्थात् आध्यात्मिक वैभव के चरणों में भौतिक वैभव का झुकना भौतिकता की निस्सारता को सिद्ध करता है। इसके साथ ही त्यागी तपस्वी मुनि श्मशान, खंडहर आदि में भी ठहरते हैं, उनके लिए भवन और वन समान है,वे समता के साधक भौतिकता से प्रभावित नहीं होते, यह प्रतिपादन भी सूत्र का लक्ष्य रहा है। इसके अतिरिक्त किसी विशेष प्रसंग से बाहर निकलते हुए राजा महाराजा, देव-देवियों और जनसमुदाय की समारोह पूर्वक प्रस्थान की परिपाटी भी रही है। अनशनादि तपों का वर्णन- भगवान महावीर के दीर्घतपस्वी जीवन एवं उनके अंलेवासी अणगारों की कठोर तपाराधना के प्रसंग में अनशनादि १२ तपों के भेदों का वर्णन इस आगम की विशेषता है। यहां कुछ तपों के विषय में संकेत करना वांछनीय होगा। अनशन तप- इस तप के दो प्रमुख भेद बताए गए- इत्वरिक और यावत्कथिक। इत्वरिक तप मर्यादित काल के लिए चउत्थभत्त से छ: मासी तष पर्यन्त होता है एवं यावत्कथिक में जीवनभर के लिए आहार त्याग होता है। यावन्कथिक में पादयोगमन संथाग़ एवं भक्तपणन प्रत्याख्यान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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