Book Title: Auppatik Sutra
Author(s): Chandmal Karnavat
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 1
________________ औपपातिक सूत्र प्रो. चांदगल कर्णावत अंगबाह्य उपांग आगमों में आँपपातिकसूत्र' की गणना प्रथम स्थान पर की जाती हैं। कई आगमों में वर्णित विषयों का इसमें निर्देश किया गया है। चम्पानगरी, पूर्णभद्र चैत्य, बनखण्ड आदि का इसने मनोहारी वर्णन है चमनरेश कर्णिक द्वारा भगवान महावीर के दर्शन करने संबंधी वर्णन भी विस्तार से हुआ है। इसमें द्वादशविध तप का भी विस्तृत विवेचन है। भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस आगन क अध्ययन उपयोगी है। समर्पित स्वाध्यायी प्रशिक्षक एवं सेवानिवृत्त प्रोफेसर श्री दमल जी कर्णावट ने औपपातिक सूत्र के विविध आयामों का दिग्दर्शन करवा है । - सम्पादक चतुर्दशपूर्वधर स्थविर प्रणीत 'उववाइय' या 'औपपातिक सूत्र' चारह उपांगों में प्रथम है। इसे आचारांग सूत्र का उपांग माना जाता है। आचार्य अभयदेव सूरि द्वारा रचित औपपातिक वृत्ति में एतद्विषयक उल्लेख किया गया है । आचारांग में वर्णित 'मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ' का विश्लेषण औपातिक में किया जाना इसका प्रमाण माना गया है। औपपातिक का नामकरण आचार्य अभयदेव के अनुसार 'उपपात में देव एवं नारकियों के जन्म तथा सिद्धिगमन के वर्णन से प्रस्तुत आगम का नाम औपपातिक है। (औपपातिक अभयदेववृत्ति) औपपातिक का संक्षिप्त परिचय - औपपातिक या उवत्राइय शब्द उपफत से बना है । उपपात का अर्थ 'जन्म' है। इस आगग में देव नारक एवं अन्य जीवों के उपपात या जन्म का वर्णन होने से यह औपपातिक कहलाया । प्रस्तुत आगम वर्णनप्रधान शैली में रचित है। संबंधित वर्णन विस्तार से हुए हैं, अत: यह अन्य आगमों के लिए संदर्भ माना जाता है। बीच में कुछ पद्य रचना होते हुए भी यह मुख्यत: गद्यात्मक रचना है। आगम का आरंभ चम्पानगरी के वर्णन से हुआ है। इसके बाद पूर्णभद्र चैत्य, वनखण्ड शिलापट्ट के शब्दचित्र युक्त सुन्दर वर्णन इसमें उपलब्ध हैं । आगम के पूर्वार्द्ध में उक्त वर्णनों के अनन्तर तीर्थंकर भगवान महावीर का चम्पा में पदार्पण, यहीं भगवान की शिष्य संपदा का ललित चित्रोपम वर्णन, आध्यात्मिकतापूर्ण वैराग्यांत्पादकता, महावीर के ज्ञानी. ध्यानी तपस्वी लन्धिसंपन्न साधु संघ का वर्णन, प्रसंगोपात्त अनशनादि १२ तपों के भेदोपभेदों का सुविस्तृत कथन, महाराजा कुणिक की दर्शनार्थ जाने की तैयारी, महारानियों की दर्शनार्थ प्रस्थान की तैयारी, प्रभु के समवसरण में देवों का आगमन, देव ऋद्धि का चित्रण, जनसमुदाय का चित्रण अत्यन्न मनोरम शैली व साहित्यिक शैली में निरूपित है आगम के उत्तरर्द्ध में गणधर गौतम की विभिन्न देवों आदि के उपपात (जन्म) संबंधी जिज्ञासाएँ और उनका समाधान, इसी प्रसंग में तत्कालीन परिव्राजकों की अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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