Book Title: Auppatik Sutra
Author(s): Chandmal Karnavat
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ सैन्य वर्णनीय था। राजमहिषियाँ भी सदाचारी, पतिव्रता एवं लावण्यमयी थी। कणिक के दरबार में विभिन्न अधिकारी, मंत्री आदि थे। उनमें गणनायक (जनसमूहों के नेता), तन्त्रपाल या उच्च आरक्षी अधिकारी, मांडलिक राजा, मांडलिक/ भूस्वामी, महामंत्री, अमात्य, सेठ, सेनापति आदि थे। दूत, सन्धिपाल (सीमारक्षक), सार्थवाह, विदेशों में व्यापाररत व्यवसायी आदि से उसका दरबार सुशोभित था। भगवान महावीर का पदार्पण- चम्पानगरी में श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। यहां शास्त्रकार ने तीर्थकर भगवान महावीर की शरीर सम्पदा का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया है। वर्णन के प्रारंभ में 'नमुत्थुणं' के पाठ में वर्णित 'आइगराणं' से 'संयंसंबुद्धाणं' तक के विशेषणों, आध्यात्मिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है जो पाठक के मन में अध्यात्मभावों का ज्वार सा उभारने में सक्षम है। तदनन्तर तीर्थकर महावीर की शरीर सम्पदा का सर्वाग वर्णन कोमलपदावली में चित्रोपत्र शैली में किया गया है। प्रभु के अंग- प्रत्यंगों के वर्णन के साथ तीर्थकर के शुभ लक्षणों तथा उसके वीतराग स्वरूप का मर्मस्पर्शी वर्णन शब्दचित्रों में प्रस्तुत किया गया है। साधु संघ और स्थविर समुदाय से परिवृत्त भगवान महावीर पूर्णभद्र चैत्य में अवग्रह लेकर ठहरे और संयम-तप में आत्मा को भावित करते हुए विराजे। यहीं शास्त्रकार ने प्रभु की सेवा में रहे हुए अन्तेवासी अणगारों का भी वर्णन किया है, जो हृदय में वैराग्यभाव की हिलोरें पैदा करता है। अनेक अणगार स्वाध्याय में, शेष ध्यान तथा धर्मकथा आदि में निरत थे। अनेक तपस्वी थे जो रत्नावली, कनकावली तप तथा श्रमण प्रतिमाओं की साधना में सलंग्न थे। वे ज्ञानी, तपस्वी एवं लब्धिसम्पन्न थे। समिति गुप्ति के धारक, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी अनेक गुणों के धारक, हवन की गई अग्नि के समान तेजस्वी और जाज्वल्यमान थे, दीप्तिमान थे, साथ ही स्थविरों के वर्णन में बताया कि वे सर्वज्ञ नहीं, परन्तु सर्वज्ञ समान थे। इन गुणसंपन्न अणगारों को गुणशाला से शास्त्र को सजाया गया है। भगवान के दर्शनार्थ महाराज कुणिक व रानियों की तैयारी एवं प्रस्थान- नियुक्त कर्मचारियों से प्रभु महावीर के आगमन की सूचना पाकर महाराज कूणिक एवं राजरानियों ने तैयारी की। स्नान, मज्जन करके वस्त्राभूषण धारण किए। चतुरंगिणी सेना, सेनानायकों, मंत्रियों आदि कर्मचारियों को तैयारी एवं प्रस्थान का आदेश हुआ। सभी योग्य वेशभूषा में उपस्थित हुए। हाथी, घोड़े, रथ एवं पैदल चतुरंगिणी सेना तैयार थी। आठ मंगल श्री वत्स, जलकलश, छत्र-चंवर, विजय पताका आदि की विस्तृत सज्जा के साथ प्रस्थान का चित्रमय वर्णन प्रस्तुत किया गया है। देवदेवियों का एवं जनसमुदाय का आगमन दर्शन वन्दन- असुरकुमारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7