Book Title: Atmanand Prakash Pustak 093 Ank 09 10
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CO श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज का दिव्य जीवन ॐ महान ज्योतिधर है शांतिसागर के साथ संवाद गुज. लेखक श्री सुशील हिन्दी अनु. रंजन परमार श्री आत्मागभ जी महाराज का पंजाब से उपरोक्त बात सुन, श्री आत्माराम जी का जब प्रथम बार गुजरात में आगमन हुआ था अंतरात्मा क्षुब्ध, संतप्त हो गया । उन्होंने श्री यह घटना तब की है। वे सच्चे गुरु की बुट्टेराय जी महाराज की सेवा में उपस्थित हो, खोज में थे । श्री बुट्टेराय जी महाराज अत्यंत अपनी शंका का निराकरण करने का आग्रह भद्र, पवित्र ओर सरल प्रकृतिस्थ साधुपुरुप किया । थे । अतः स्वाभाविक रूप है आत्माराम जी "भाई आत्माराम ! मैं तुम्हारे महश का मन उन गुरु के रूप अंगीकार करने पांडित नहीं हूँ । मैंने तुम्हारि तरफ कभी के लिए प्रेरित हुआ । शास्त्राभ्यास नहीं किया और ना ही मुझमें किन्तु उसी समय किसी ने उन्हें बताया इतनी क्षमता है। ठीक उसी भाँति शांतिसागर कि, 'अलबना, श्री बुट्टेराय जी महाराज सभी के साथ वाद-विवाद अथवा चर्चा कर सकृ, दृष्टि से योग्य और समर्थ पुरुप है । फिर इतनी विद्वता भी मुझमें नहीं है। मैं मानता भी आजकल वे श्री शांतिसागर के घनिष्ट हूं कि तुम स्वयं प्रकांड पंडित हो... सिद्धांतपरिचय में है, जब कि शांतिशागर जी मन शैली के मर्मज्ञ हो । अतः यही इष्ट है कि हो मन स्व-सिद्धान्त बना चौंठ है कि तत्का- तुम शांतिसागर के साथ शास्त्रार्थ करो। लीन समय में कही भी सच्ची साधुता नहीं मैं उसे ध्यानपूर्वक 'सुनूगा और तव अपना रही । उनके स्व-घोपित सिद्धांत की धुंधली निश्चय घोपित करूगा, मेरे वास्तविक मत से छाया श्री बुट्टेराय जी महाराज पर भी बरकरार सबकों परिचित करु'गा।” प्रत्युत्तर में है । फलस्वरूप जो व्यक्ति स्वयं को ही साधु श्री बुट्टेराय जी महाराज ने निर्दोष-निर्दभ मानने से इन्कार करता हो उसे आप गुरु-पद वाणी में कहा। पर प्रस्थापित करे, यह कहाँ तक उचित्त है ।" आत्माराण जी ने श्री बुट्टेराय जी महाराज For Private And Personal Use Only

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