Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 05 06
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसगति पञ्चमगतिवासं, रूपी बादलों को हटाने में वायु के समान वासवविहिताशंसं रे । आदि० ४ तथा मान-अहंकाररुपी योद्धा को जीतनेवाले अपनी कान्ति से देवश्रेष्ठ और पुरुषश्रेष्ठ भगवान आदि जिनेश्वर को मैं वन्दन करता को आनन्दित करनेवाले, सज्जनों के अन्तःक- हूँ । ५ । रणरुप मानस सरोवर में हस के समान, (वसन्त-तिलका-छन्द) हस के समान गतिवाले, पंचमगति (मोक्ष) इत्यं स्तुतः प्रथमती/पति: प्रमोदामें निवास करनेवाले तथा इन्द्र के द्वारा "च्छीमद "यशोविजयवाचक"पूगवेन ।। प्रशंसित ऐसे भगवान आदि जिनेश्वर को श्रीपुण्डरीकगिरिराज-विराजमानो, मैं वन्दन करता हूं ।४। .. मनोन्मुखानि वितनोतु सतां सुखानि ६ शंसन्तं नयवचनमनवमं, इस प्रकार वाचक श्रेष्ठ 'श्रीमद यशो___ नवमंगलदातारं रे। विजयजी' द्वारा आनन्द-पूर्वक स्तुति किये तारस्वरमधधनपवमानं, गये, पुण्डरीक गिरिराज पर विराजमान मानसुभटजेतारं रे । आदि० ५ भगवान आदि जिनेश्वर सज्जनों को सम्मानअनवद्य नय-वचनों को कहनेवाले, नवीन पूर्वक उन्नति एवं सुख प्रदान करे । ६ । नवीर मगल के दाता, उच्चस्वरवाले, पाप. ... यशोविजयजी और आनंदघनजी ८ यशोविजयजी उपाध्याय काशी में बारह ५०. ध्वजाए रहे । उस सभा को यशोविवर्ष रहे । तीनसो वर्ष पहेले कि बात हैं। जयजीने जीत लिया। विहार करते करते ब्राह्मण होकर रहे । जनेउ पहन कर रहे । जब गुजरात में जाते हैं. तो ५०० ध्वजाए साधुपना छोडकर रहे । गृहस्थ होकर रहे आगे लेकर चलते है कि मेरे जैसा दिग्विजयी और काशीमें विद्वत्ता प्राप्त की। यह करने कोई नहीं । एक गांवमें चले गये । महान के बाद कई सभाएं जीती और इसके बाद विद्वान थे, उनका व्याख्यान चल रहा था । 'न्यायविशारद' की उपाधि मिली । एक सभा ऐसी जीती कि जिसमें ५०० उन्हीं दिनों, वहां आनन्दधनजी भी थे। ध्वजाए रक्खी गयी थी। उस सभामें प्रतिज्ञा त्यागी, महात्मा, योगी, महासमर्थ, लब्धिवान थी कि, जो उस सभामें जीते, उसके आगे ये थे। गांव के लोग उनके पास गये । लोगोंने For Private And Personal Use Only

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