Book Title: Atmanand Prakash Pustak 092 Ank 05 06
Author(s): Pramodkant K Shah
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनाए, जगत की मनुष्य जाति के कल्याण है-उत्तर दिशाका राज दे देता हैं। और के लिये अधर्म के मार्ग से छुडा कर सचे चौथा लेोक सुनाने पर दक्षिण दिशा का मार्ग पर लाने के लिये शास्त्र बनाये । राज्य भी दे डालता है। सज्जनों, मैं प्राचीन शिलालेखों का संग्रह चार श्लोक में चार दिशाओं का राज्य कर रहा था, जब मैं शिवपुरी में था और देकर राजा चरणों में गिरता हैं और कहता उन पर एक पुस्तक भी लिख रहा था। उस है -'यह सब सिद्धसेन दिवाकर का राज्य है। संग्रह में एक शिलालेख देखा जिस पर यह उस समय विक्रमादित्य को आचार्यजी सुनाते मुद्रालेख था। है-'हमें राज्य की जरूरत नहीं। हम तो राज-पाट सब छोड चुके है। हमतो 'चीरं जीयात चीरं जीयात देशोऽर्थ धर्मरक्षणात तुम्हें आशीर्वाद देने आये है! क्या आशीर्वाद है सुनोहमारा यह देश घम के रक्षण से लाखों-' 'धर्मलाभका आर्शीवाद करोडों वर्ष तक जीता रहे । यह हमारे दुर्वारा वारणेन्द्रः, ऋषियों और मुनियों का वाक्य था । इतना नितपवनजवा वाजिनः स्यन्दनौधाः, महत्व हमारे हिन्दुस्तान में आर्य संस्कृति में लीलावन्त्यो युवत्यः. नील धर्म को दिया जाता था । हमारे यहां तो प्रचलित चमरभूषिता राजलक्ष्मीः । यहां तक सिद्धान्त आ गया था कि जब साधु __उद्ध श्वेतातपत्र, आशीर्वाद दें तो यह न कहे कि- धनवान चतुरुदधितटीसङ कुला भेदनीयम, भव, पुत्रवान भव, ऐश्वर्य वान भव ! ऐसा प्राप्यन्ते यत्प्रभावात आशीर्वाद न दें। त्रिभुवनविजयो सोऽस्तु वो धर्मलाभः ।। ऐतिहासिक बात है.- सिद्धसेन दिवाकर अर्थात- हाथी और घोडे की सम द्धि राजा विक्रमादित्य के पास जाते हैं, किसी जिस के कारण से प्राप्त होती हैं, सुन्दर से कारण से । उस समय विक्रमादित्य को एक सुन्दर रूपवती पतिव्रता धर्म का पालन करअनुष्टुप लोक (जिस में ३२ अक्षर होते हैं) नेवाली स्त्रिीयों जिस के कारण से मिलत! सुनाया जाता है । एक लोक सुनने पर पूर्व हैं, जिस के मस्तक पर छत्र धारण होता है, दिशा का राज्य उस साधु के चरणो में जिस के कारण से चार समुद्रो से घिरी राजा धर देता है। हुई पृथ्वो मिलती है, जिस के कारण से त्रिभुवन की लक्ष्मी और त्रिभुवन का विजय .. दूसरा श्लोक सुनाते हैं- पश्चिम दिशा प्राप्त होता है ऐसा 'धर्मलाभ' हे राजन का राज्य धरता है। तीसरा श्लोक सुनाते तुम्हे हों ।' वात For Private And Personal Use Only

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