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श्री आत्मानंद प्रकाश
हिन्दी विभाग
कीर्तितपथमविरोषं रे ।। आदि० १
न्याय-विशारद -- न्यायाचार्य - महोपाध्याय श्रीमद् 'यशोविजय 'गणि- विरचिता हिन्दी भाषानुवादभूषिता
श्री पुण्डरीक - शत्रुञ्जयगिरिराजविराजमान
श्री आदिजिनस्तोत्रम् | श्री पुडरीक शत्रुञ्जयगिरिराजमण्डन श्रीआदिजिनस्तोत्र
( गीत - छन्द)
आदिजिनं वन्दे गुण-सदनं,
सदन तामलबोधं रे । ६ गुण विस्तृत कीर्ति,
अभगयोग के धारक, भग ( विकल्प - विशेष ) और नैगमादि नयों से सुन्दर वचनवाले तथा श्रमणों के सुख के लिये संगमरूप भगवान आदि जिनेश्वर को मैं बन्दन करता हूँ |२| संगतपशुचिवचनतरंग,
गुणों के आगार, सत्, अनन्त तथा निर्मल ज्ञान से युक्त, ज्ञान प्रद गुणों से विस्तृत कीर्तिवाले और जिसका मार्ग सभी द्वारा प्रशंसित है ऐसे वीतराग भगवान् आदि जिनेश्वर को में वन्दन करता हूं । १ । रोधरहित विस्फुरदुपयोगं,
योगं दधतमभ गरे ।
भगनयन्रजपेशलवाचं,
वाचंयमसुख - संग रे । आदि० २ अप्रतिहत - स्वतन्त्र उपयोगों से विभासित,
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हिंमतलाल अनोपचंद मोतोवाळ'
रंगत जगति दद्रानं रे । दानसुरद्र ुममंजुलहृदयं,
हृदयंगम गुणभान रे । आदि० ३ संसार में सर्वोपयोगी आगम पदों से युक्त निमँल वचनों की तरंगों से हर्ष का वितरण करनेवाले, दान में कल्पवृक्ष के समान तथा मनोहर हृदयवाले और सुन्दर गुण से विभूषित भगवान आदि जिनेश्वर को मैं वन्दन करता हूं ||३|
भानन्दित - सुरवरपुन्नायं,
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नागरमानसहंस रे ।
(१