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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ,
आप के इन सब महान् उपकारों से तो जैन-जनता किसी भी प्रकार उऋण नहीं हो सकती, फिर भी फूल के स्थान पर पत्ती के रूप में आप को 'अज्ञानतिमिरतराणि कलिकालकल्पतरु' बिरुद अर्पण करने को हम विनयपूर्वक तत्पर हुए हैं और आप इस को स्वीकार कर के हमारी हार्दिक अभिलाषा अवश्य पूरी करेंगे और हमारे उल्लास की वृद्धि करेंगे ऐसी आशा है ।
श्रीसंघ की आज्ञा से विनीत चरणोपासक सेबकगण-- श्रीबामणवाडजी तीर्थ (सिरोही राज्य) भभूतपल चतराजी, दलीचंद वीरचंद, मिति वैशाख वदि ३ गुरुवार सं० १९९० डाह्याजी देवीचंद, रणोडभाईता० १३ अप्रेल सन १९३३ ईस्वी ) राइचंद मोतीचंद, गुलाबचंद ढढ्ढा
आदि श्री संघ के सेवक.
शान्त, दान्त, गम्भीर, दयालु, परोपकारी, शान्तमूर्ति योगीराज
श्री १०८ श्री शान्तिविजयजी की पवित्र सेवामें -
अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण. योगीराज !
__ श्रीबामणवाड़जी तीर्थ में श्रीनवपदजी की चैत्री ओली पर तथा श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के शुभावसर पर, भारतवर्ष के भिन्न भिन्न प्रान्तों से आकर एकत्रित हुए जैन संघ को यह जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ है कि आपने योगाभ्यासद्वारा शुद्ध और परिष्कृत आत्मवल से अनेक राजा, महाराजा, सेठ, साहूकार, हिन्दु, मुसलमान, ईसाई, पारसी इत्यादिकों को
आत्मा की उन्नति के लिये मंत्रोपदेश तथा जीवदयापालन का उपदेश देकर लगभग सारे भारतवर्ष में अहिंसा धर्म का सन्देश पहुँचा कर अनेक जीवों की रक्षा कराई है तथा आपने अनेक जीवों को मदिरापान और मांसाहार से बचा कर उन के प्रति महद् उपकार किया है।
आप के इस परोपकार का बदला चुकाना तो हमारी सामर्थ्य के बाहर है किन्तु इस के स्मरण स्वरूप हम आप को 'अनंतजीवप्रतिपाल योगलब्धिसंपन्नराजराजेश्वर' पद विनयपूर्वक अर्पण करते हैं और आप की आत्मा दिन
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