________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૨૨૮
શ્રી આત્માન પ્રકાશ.
- ૩૦ આંબા જેવાં ફાલેલાં વૃક્ષો નમી-લળી પડે છે તેમ સુગુણ જને (સજનો) પણ જેમ જેમ ગુણમાં વૃદ્ધિ કરતાં જાય છે તેમ તેમ નમ્રતા ધારે છે. એજ પ્રભુતા પામવાને સરળ માર્ગ છે.
(अपूर्ण)
एक आर्यसमाजका मृषावाद.
आर्य प्रकाश महा सदि ६ संवत १९७३ ता. २८ जान्युआरि १९१७ के अंकमें एक किसी मिथ्याभिमानी लेखने प्रातः स्मणीय जैनाचार्य श्रीमविज्य कमल सूरीश्वरजी महाराज पर....( अमे वेद अने इश्वरने मानीये छीये) यह मिथ्याआरोप देकर श्रीमद् व्याख्यान वाचस्पति मुनिश्री लब्धिविजय महारा जसें “ नरसंडा, वडताल, नडीआद" आदि नगर निवासी सेंकडो सज्जन पुरुषोंकी सभामें आर्यसमाजीयोंका तथा उनके पांडतजीका जो पराज्य हुवाथा उस बातको छिपानेके वास्ते मिथ्यालेख लिखकर " मीयांजी गिर गये मगर टांग उचीकी उची" इस कहवतके अनुसार अपने कदाग्रह झाहिर कीया है. क्योंकी श्रीमान सूरीश्वरजी महाराजके प्रमुखपणा नीचे श्रीमद वाचस्पतिजी महाराजका वहाँके जैन व जैनेतर लोगोंके अति आग्रहसे “ मूर्ति पुजन ओर मुक्तिसे जीव वापीस (पाछा) नहीं आशक्ता है" इन दो विषयोंपर प्रसिद्ध व्याख्यान हुवाथा. जिसको सुनकर वहांकी आर्य समाजकी तर्फसे दो महाशय उठ कर वाचस्पतिजीसे पूर्वोक्त विषयोंपर वादविवाद करने लगे, अन्तमें श्रीमद् वाचस्पतिजीकी पूर्ण विद्वतावाळी युक्तियों के आगे उनको निरुत्तर होना पडा. अन्तमें समाजको विसर्जन करते हुए यह कहा गयाकी कलभी इनही विपयोंपर दुपहारको व्याख्यान होगा और साथही आर्यसमाजीयोंसे यहभी कहा गयाथाकी अगर तुम शास्त्रार्थद्वारा सत्यतत्वका निर्णयकरना चाहते हो तो अपने अछेसे अछे विद्वानको बुलालो. दुसरे दिन भी इसी तरह श्रीमान् सूरीश्वरजी महाराजके प्रमुखपणा नीचे व्याख्यान प्रारंभ हुआ. उस समथ आर्यसमाजकी तर्फसे बहारसे आये हुए पंडितजी भी एक तरफ प्लेटफारम जगा कर बैठे हुए थे, अनुमान आधे घंठेके व्यख्यान श्रवण करनेसेही पंडितजी समज गये कि मूर्तिपूजन और मुक्तिसे जीव ( पाछा) वापीस नहीं आ सकता है इन विषयोंको पुष्ट करनेवा.
For Private And Personal Use Only