Book Title: Atma Vastu ka Dravya Paryayatmaka Shraddhan Samyagdarshan Hai Author(s): Babulal Publisher: Babulal View full book textPage 5
________________ १.६ वक्ता की विवक्षा के अनुसार ही निश्चयत्व-व्यवहारत्व अथवा मुख्यता - गौणता दृष्टियों का वस्तु-स्वरूप का एक पक्ष द्रव्य-स्वभाव या सामान्य है, तो दूसरा पक्ष उस वस्तु की परिणति / पर्याय या विशेष है । फिर भी, सम्पूर्ण वस्तु एक ही है। उस वस्तु–स्वरूप का वर्णन करते हुए वक्ता चूंकि दोनों पक्षों को एक साथ कहने में असमर्थ है, इसलिये वह किसी एक पक्ष को लक्ष्य करने वाली दृष्टि को मुख्य करके कथन करता है, जिससे प्रतिपक्षी दृष्टि स्वतः ही गौण हो जाती है । जिस प्रकार, दही को मथने वाली गोपिका जब मथानी पर लिपटी रस्सी के एक सिरे को अपनी ओर खींचती है तो उसका दूसरा सिरा स्वतः ही दूर चला जाता है; उसी प्रकार, वस्तु–स्वरूप का चिंतवन या प्रतिपादन करते समय वस्तुरूपी रस्सी का जो पक्षरूपी सिरा अपनी ओर खींचा जाता है अर्थात् मुख्य किया जाता है वह निश्चय कहलाता है। और, उसी वस्तुरूपी रस्सी का दूर चला जाने वाला सिरा अर्थात् गौण कर दिया गया पक्ष व्यवहार कहलाता है। वस्तु के अस्तित्व में निश्चय या व्यवहार नामक कोई पक्ष नहीं हैं वस्तु की सत्ता में प्रतिपक्षी वस्तु-अंशों पर 'निश्चय' और 'व्यवहार' नाम के कोई लेबल (labels ) नहीं लगे हैं। हमारे सापेक्ष कथन में मुख्य किये गए वस्तु - अंश को निश्चय भी कहा जाता है और गौण किये गए वस्तु-अंश को व्यवहार भी कहा जाता है। ये दो वस्तु - अंश, दो प्रतिपक्षी नयों या दृष्टियों के विषय बनते हैं, जबकि दोनों नयों / दृष्टियों से अविरुद्ध वस्तु - स्वरूप प्रमाण का विषय है। सम्यग्ज्ञान का — $ १.७ सम्यग्दर्शन : क्या मात्र द्रव्यदृष्टि के विषय का श्रद्धान ? इस प्रकार, वस्तु–स्वरूप का स्पष्ट, संदेह - रहित, युक्तियुक्त एवं आगमानुकूल विवेचन- विश्लेषण करने पर हमें सहज ही समझ में आता है कि आत्म-वस्तु के मात्र सामान्य अंश का श्रद्धान कदापि सम्यग्दर्शन नहीं 5Page Navigation
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