Book Title: Atma Vastu ka Dravya Paryayatmaka Shraddhan Samyagdarshan Hai
Author(s): Babulal
Publisher: Babulal

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Page 8
________________ है। जब ऐसा जीव – पर्यायमूढ़ जीव - तत्त्वज्ञान और भेदविज्ञान की निरंतर भावना के द्वारा द्रव्यदृष्टि-विषयक सही/सम्यक् श्रद्धान को प्राप्त करता है, तब उसे पर्याय में : (क) शरीर और आत्मा के बीच एकत्व के बजाय संयोग-सम्बन्ध दिखाई देता है; (ख) रागादि भाव स्वभाव के बजाय विकारी भाव – जैसे भारीर के स्तर पर रोग एक स्वस्थता-विरोधी विकार दिखाई देता है, उसी प्रकार आत्मद्रव्य के रोगवत् - दिखाई देते हैं; (ग) द्रव्यकर्म और आत्मा के बीच कर्ता-कर्म सम्बन्ध के बजाय अब निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध समझता है; (घ) बाहरी स्थितियां अब उसे कर्मजनित, पर-संयोग रूप नज़र आती हैं, उनमें मिथ्या कर्तृत्व/ स्वामित्व-बुद्धि का उसके अब अभाव हो जाता है। यह पर्यायदृष्टि-विषयक सही श्रद्धान है, जो द्रव्यदृष्टि के विषय का अर्थात् आत्म-स्वभाव का सही श्रद्धान होने पर ही होता है। जब तक द्रव्यदृष्टि के विषय का सही श्रद्धान नहीं होता, तब तक पर्यायदृष्टि का विषय ही अज्ञानी, पर्यायमूढ़ जीव को द्रव्यदृष्टि-के-विषयवत् दिखाई पड़ता है। आत्मा का अपने ज्ञान-दर्शन गुणों के साथ वस्तुतः जैसा एकत्व या तादात्म्य है, वैसा एकत्व या तादात्म्य यह अज्ञानी जीव शरीर और रागादिक के साथ अनुभव करता है। तथा, आत्मा का जैसा कर्ता-कर्म सम्बन्ध वस्तुतः अपने ज्ञान-दर्शन गुणों के साथ है, वैसा कर्ता-कर्म सम्बन्ध यह जीव द्रव्यकर्म के साथ मानता है। इसीलिये कहा जाता है कि अज्ञानी, पर्यायमूढ़ जीव के लिये पर्यायदृष्टि का विषय द्रव्यदृष्टि के विषय का स्थान अथवा स्तर (status) ग्रहण कर लेता है।

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