Book Title: Astik aur Nastik Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 4
________________ धर्म और समाज तरह बौद्ध लोग भी सिर्फ अपने को ही सम्यग्दृष्टि और अपने बड़े भाईके समान जैन पक्षको मिथ्यादृष्टि कहने लगे । सचमुच में जिस तरह आस्तिक और नास्तिक उसी तरह सम्यग्दृष्टि और मिध्यादृष्टि शब्द भी केवल अमुक अंशमें भिन्न मान्यता रखनेवाले दो पक्षोंके लिए प्रयुक्त होते थे, जिनमें एक स्वपक्ष और दूसरा परपक्ष होता था । प्रत्येक अपने पक्षको आस्तिक और सभ्यदृष्टि कहता और परपक्षको नास्तिक और मिथ्यादृष्टि । यहाँ तक तो सामान्य भाव हुआ, पर मनुष्य की प्रकृतिमें जैसे मीठापन है वैसे ही कडुआपनका तत्त्व भी है । यह तत्व प्रत्येक जमाने में थोड़ा बहुत देखा ही जाता है । शब्द अपने आपमें किसी तरह भले या बुरे नहीं होते। उनके मिठास या कडएपन अथवा उनकी प्रियता या अप्रियताका आधार उनके पीछे विद्यमान मनोभावपर अवलम्बित रहता है | यह बात हम कुछ उदाहरणोंद्वारा ज्यादा स्पष्ट रीतिसे समझ सकेंगे । पहले हम नंगा, लुच्चा और बात्रा - इन शब्दों को ले और इनपर विचार करें ! नंगा या नागा संस्कृत में नन और प्राकृत में नगिण, लुच्चा संस्कृत में लंचक और प्राकृत में लुंचओ, बाबा संस्कृत में वप्ता और प्राकृत में वप्पा अथवा बप्पा रूपसे प्रसिद्ध है । ५४ जो सिर्फ कुटुम्ब और सम्पत्तिका ही नहीं परन्तु कपड़ों तकका त्याग करके आत्म-शोधन के लिए निर्भय व्रत धारण करता और महान् आदर्श सामने रखकर जंगल में एकाकी सिंहकी तरह विचरण करता था वह पुण्य पुरुष नमः कहलाता था । भगवान् महावीर इसी अर्थ में नन नामसे प्रख्यात हुए हैं । परिग्रहका त्याग करके और देह-दमनका व्रत स्वीकार करके आत्म-साधना के लिए ही त्यागी होनेवाले और अपने सिरके बालोंको अपने ही हाथोंसे खींच निकालनेवालेको लुंचक या लोच करनेवाला कहा जाता था । यह शब्द शुद्ध त्याग और देह-दमन सूचित करनेवाला था । वप्ता अर्थात् सर्जक और सर्जक अर्थात् बड़ा और संततिका पूज्य । इस अर्थ में बप्पा और बाबा शब्दका प्रयोग होता था । परन्तु शब्दों के व्यवहारकी मर्यादा हमेशा एक समान नहीं रहती । उसका क्षेत्र छोटा, बड़ा और कभी कभी विकृत भी हो जाता है । नन अर्थात् वस्त्ररहित तपस्वी और ऐसा तपस्वी जो सिर्फ एक कुटुम्ब या एक ही परिवारकी जवाबदारी छोड़कर वसुधा कुटुम्बी बननेवाला और सारे विश्वकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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