Book Title: Astik aur Nastik Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 1
________________ आस्तिक और नास्तिक बहुत प्राचीन कालमें जब आर्य ऋषियोंने पुनर्जन्मकी शोध की, तब पुनर्जन्मके विचारके साथ ही उनके मनमें कर्मके नियम और इहलोक तथा परलोककी कल्पना भी आविर्भूत हुई। कर्मतत्व, इहलोक और परलोक इतना तो पुनर्जन्म के साथ सम्वन्धित है ही । यह बात एकदम सीधी सादी और सहज ही सबके गले उतर जाय, ऐसी नहीं है । इसलिए इसके बारेमें थोड़ा बहुत मतभेद हमेशा रहा है। उम पुराने जमानेमें भी एक छोटा या बड़ा वर्ग ऐसा था जो पुनर्जन्म और कर्मचक्रके माननेको बिल्कुल तैयार न था। यह वर्ग पुनजन्मवादियोंके साथ समय समयपर चर्चा भी करता था। उस समय पुनर्जन्मके शोधकों और पुनर्जन्मवादी ऋषियोंने अपने मन्तव्यको न माननेवाले पुनर्जन्मविरोधी पक्षको नास्तिक कहा और अपने पक्षको आस्तिक । इन गंभीर और विद्वान् ऋषियोंने जब अपने पक्षको आस्तिक कहा, तब उसका अर्थ केवल इतना ही था कि हम पुनर्जन्म और कर्मतत्त्वको माननेवाले पक्षके हैं और इसलिए जो पश्च इन तत्वों को नहीं मानता उसको सिर्फ हमारे पक्षसे भिन्न पक्ष के तौरपर व्यक्त करने के लिए 'न' शब्द जोड़कर कहा गया । ये समभावी ऋषि उस समय आस्तिक और नास्तिक इन दो शब्दोंका केवल दो भिन्न पक्षोंको सूचित करने के लिए ही व्यवहार करते थे। इससे ज्यादा इन शब्दों के व्यवहारके पीछे कोई खास अर्थ नहीं था । पर ये शब्द खूब चले और सबको अनुकूल साबित हुए। बाद में ईश्वरकी मान्यताका प्रश्न आग। ईश्वर है और वह संसारका कर्ता भी है, ऐसा माननेवाला एक पक्ष था । दूसरा पक्ष कहता था कि स्वतन्त्र और अलग ईश्वर जैसा कोई तत्व नहीं है और हो भी तो सर्जनके साथ उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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