Book Title: Astik aur Nastik Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 2
________________ ५२ धर्म और समाज दो पक्ष और उनकी अनेक शाखाएँ जब अस्तित्वमें आई तो पहले जो आस्तिक और नास्तिक शब्द सिर्फ पुनर्जन्मवादी और पुनर्जन्मविरोधी पक्षों के लिए ही प्रयुक्त होते थे, वे ही ईश्वरवादी और ईश्वर-विरोधी पक्षोंके लिए भी व्यवहार में आने लगे। इस प्रकार आस्तिक और नास्तिक शब्दोंके अर्थका क्षेत्र पुनर्जन्म के अस्तित्व और नास्तित्वकी अपेक्षा अधिक विस्तृत यानी ईश्वर के अस्तित्व और नास्तित्व पर्यन्त हो गया । फिर पुनर्जन्म माननेवाले वर्गमें भी ईश्वरको मानने और न माननेवालोंके दो पक्ष हो गये, अर्थात् अपने आपको आस्तिक समझनेवाले आचार्य के सामने ही उनकी परंपरामें दो भिन्न पार्टियाँ हो गई। उस समय पुनर्जन्मवादो' होने के कारण आस्तिक गिने जानेवाले वर्गके लिए भी ईश्वर न माननेवाले लोगोंको नास्तिक कहना आवश्यक हो गया। परन्तु तब इन शब्दों में अमुक बात माननी या अमुक न माननी, इसके सिवाय कोई दूसरा स्वास भाव नहीं था। इसलिए पुनर्जन्मवादी आर्य पुरुषोंने अपने ही पक्षके किन्तु ईश्वरको नहीं माननेवाले अपने बन्धुओंको, वे कुछ मान्यता भेद रखते हैं इस बातकी सूचनाके लिए ही, नास्तिक कहा। इसी तरह सांख्य, मीमांसक, जैन और बौद्ध ये सब पुनर्जन्मबादीके नाते समानरूपसे आस्तिक होते हुए भी दूसरी तरहसे नास्तिक कहलाये। अब एक दूसरा प्रश्न खड़ा हुआ और वह था शास्त्रके प्रमाणका । वेदशास्त्रकी प्रतिष्ठा रूढ़ हो चुकी थी । पुनर्जन्मको माननेवाला और ईश्वर तत्वको भी माननेवाला एक ऐसा बड़ा पक्ष हो गया था जो वेदका प्रामाण्य पूरा पूरा मंजर करता था। उसके साथ ही एक ऐसा भी बड़ा और प्राचीन पक्ष या जो पुनर्जन्म में विश्वास रखते हुए भी और वेदका पूरा पूरा प्रामाण्य स्वीकार करने हुए भी ईश्वर तय नहीं मानता था । यहाँसे आस्तिक नास्तिक शब्दों में बड़ा भारी गोटालः शुरू हो गया । अगर ईश्वरको मानने से किसीको नास्तिक कहा जाय, तो पुनर्जन्म और वेदका प्रामाण्य माननेवाले अपने सगे भाई मीमांसकको मी नास्तिक कहना पड़े। इसलिए मनु महाराजने इस जटिल समस्याको सुलझाने के लिए नास्तिक शब्दकी एक संक्षिप्त व्याख्या कर दी और वह यह कि जो वेद-निंदक हो वह नास्तिक कहा जाय । इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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