Book Title: Ashtdashi Author(s): Bhupraj Jain Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta View full book textPage 6
________________ सरदारमल कांकरिया संयोजकीय श्री श्वे० स्था० जैन सभा कोलकाता की स्थापना ८० वर्ष पूर्व हुई थी। हमारे बुजुर्गो ने सोचा था कि एक स्थान अपना होना चाहिये। शुरू में उन्होंने एक कमरा किराये पर लिया एवं वहां समाज के कुछ लोग सामायिक करने आने लगे, आपस में मिलनेपर विचार विमर्श होने लगा कि जगह अपनी होनी चाहिये, कुछ दिनों बाद श्री उदयचन्दजी डागा ने १, पांचा गली स्थित भवन शुभ कार्यों हेतु दिया। वहां सामायिक होती एवं पर्युषण पर्व आराधना तथा प्रतिक्रमण होते। थोड़े दिन बाद १७ मार्च १९३४ की शुभ घड़ी में १४२ए सुत्ता पट्टी में स्कूल चालू कर दी गई जिसके हेड मास्टर बच्चन सिंह थे एवं प्रथम छात्र थे श्री सोहनलाल गोलछा। समाज के कतिपय लड़केलड़कियां वहां पढ़ने लगे। समाज के कर्णधारों के विचार विमर्श में मुद्दा रहने लगा कि कोई बड़ी जगह लेकर अच्छा स्कूल बनाया जाये। श्री फूसराजजी बच्छावत की लगन एवं निष्ठा से तथा उनके सहयोगियों के सहयोग से १८डी, सुकियस लेन में १६ कट्ठा जगह लेने का निश्चय किया। आठ कट्ठा जमीन श्री मनमोहन भाई देसाई गुजराती से लेने का निश्चय किया। ८ कट्ठा मनमोहन भाई देसाई से सीधे ली, ८ कट्टा श्री मगनमलजी पारख से निवेदन करने पर उन्होंने सभा हेतु दी। उनको पता चला कि यहां स्कूल होगी तो उनका आग्रह रहा कि यह जमीन भी आप ले लेवें, आर्थिक असुविधा थी पर उन्होंने आश्वासन दिया कि आप रुपया बाद में दे देना। बीकानेर की हितकारिणी संस्था से रु० ५००००/- उधार लिया तथा निर्माण कार्य शुरु हुआ। कार्यकर्ताओं में अपूर्व जोश था लेकिन समाज के सदस्यों की तादाद कम थी तथा आर्थिक स्थिति भी साधारण ही थी लेकिन मन में अदम्य उत्साह था। श्री फूसराजजी बच्छावत, श्री सूरजमलजी बच्छावत, श्री कन्हैयालालजी मालू, श्री पारसमलजी कांकरिया आदि कई सदस्य सक्रिय होकर जगह-जगह घूमकर चंदा एकत्रित करने लगे और मकान का निर्माण तभी से होने लगा। अर्थ के अभाव में जब निर्माण का कार्य धीमा हुआ उस वक्त सुप्रसिद्ध समाज सेवी साहु श्री शांतिप्रसादजी जैन ने रु० ४४०००/- का आर्थिक सहयोग देकर कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाया और निर्माण द्रुतगति से चालू हो गया। स्कूल के कमरे एवं सुन्दर हाल का निर्माण हो गया तथा श्री रामानन्दजी तिवारी को हेडमास्टर बनाकर स्कूल चालू की गई। शुरु में स्कूल ८वीं कक्षा तक थी। स्कूल की प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष श्री फूसराजजी बच्छावत को एवं मंत्री मुझे चुना गया। कार्यकारिणी में श्री रिखबदास भंसाली, मानिक बच्छावत आदि काफी नवयुवक थे। उत्साह के साथ जैन विद्यालय का शुभारम्भ हुआ। पहले वर्ष २०० छात्र थे। आहिस्ता-आहिस्ता छात्रों की संख्या बढ़ती गई। स्कूल भी १० कक्षा तक उन्नत हो गई। बाद में ११वीं कक्षा तक स्कूल को मान्यता मिली। कमेटी की सूझबूझ से एवं योग्य हेडमास्टर की कार्य शैली, शिक्षकों की लगने एवं योग्यता से स्कूल प्रतिदिन प्रगति की राह पर बढ़ती गई, कुछ वर्षों बाद हायर सेकेण्डरी यानि १२वीं कक्षा तक मान्यता मिल गई। श्री जैन विद्यालय ० अष्टदशी ० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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