Book Title: Ashtdashi Author(s): Bhupraj Jain Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta View full book textPage 8
________________ कॉलेज शीघ्र ही शुरु होने जा रहा है। इसी बीच एक कामर्स कॉलेज भी शुरु करने के लिए कमरे तैयार कर लिये गये हैं। सन २००८ के जून से कमलादेवी सोहनराज सिंघवी के नाम से कॉलेज आफ एज्यूकेशन भी चालू होगा। लगभग साढ़े सात एकड़ जमीन है, इसमें और भी कई प्रवत्तियाँ चालू की जायेंगी। श्रीमती लक्ष्मीदेवी पीरचंद जी कोचर की स्मृति में श्री पन्नालालजी कोचर ने नसिंग कॉलेज की घोषणा की, इसका भूमि पूजन हुआ किन्तु जमीन की कठिनाई के कारण कुछ विलम्ब से प्रारम्भ होगा। सभा के बुक बैंक के माध्यम से हर वर्ष १५०० ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों के छात्रों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें वितरित करती है। इस वर्ष सभा की स्थापना का ८०वाँ वर्ष है। आठ दशक के इस पावन अवसर पर सभा द्वारा और कई लोकोपकारी कार्य हो, ऐसा प्रयास रहेगा। थोड़े से सदस्य होते हुए भी आपस में प्रेम, स्नेह एवं कार्य करने की लगन से ही यह संस्थान कोलकाता की लोकप्रिय संस्थाओं में विशेष स्थान रखता है। संस्था में युवा कार्यकर्ताओं का भी इन दिनों प्रवेश हो रहा है, यह भविष्य का शुभ संकेत है। देश की, समाज की स्थिति विगत दस वर्षों में तेजी से आगे बढ़ी है व्यापार एवं शिक्षा सभी में, ऐसे समय में उच्च शिक्षा की अति आवश्यकता है। टेकनीकल एवं उच्च शिक्षा काफी मंहगी हो गई है। जरुरतमन्दों को यह उच्च शिक्षा उपलब्ध हो, ऐसा प्रयास सभा को तथा समाज की संस्थाओं को करना चाहिये तभी ज्यादा से ज्यादा देश एवं समाज के नवयुवक एवं नवयुतियाँ उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। साथ ही साथ गांवों में बेरोजगार बहुत से युवा हैं इनको रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना इस समारोह का मुख्य उद्देश्य होना चाहिये। ऐसा यदि करेंगे तो सभा अपने कर्तव्य के रास्ते चलेगी। देश एवं समाज में ज्यादा सेवा हो एवं युवा-जन का भविष्य संवार सकें, उनको सहयोग देकर आत्मनिर्भर बना सकें, ऐसे वातावरण का निर्माण करने से ही सभा आगे बढ़ेगी। इस समारोह में एक नवयुवक का सम्मान करने का निश्चय किया गया है जो कि स्वनिर्मित (सेल्फ मेड है। इस व्यक्ति ने साधारण आर्थिक स्थिति में जन्म लेकर छोटे ग्राम देशनोक में मामूली शिक्षा प्राप्त की। अपनी लगन, निष्ठा, सरलता एवं सूझबूझ से व्यापार में अपना विशेष स्थान बनाया। व्यापार का दिन दूना, रात चौगुना विस्तार किया लेकिन सरलता, विनय, सहयोग की अधिकाधिक भावना से ओतप्रोत होते गये। उनकी उदारता भी बेमिसाल है। राजस्थान, कोलकाता आदि में से कहीं का भी कोई सहयोग लेने आया तो खाली हाथ नहीं भेजा। आज कलकत्ता में श्री दुगड़जी उदारता में अपने आपमें एक उदाहरण हैं। सैकड़ों संस्थाएँ इनसे लाभान्वित हुई हैं। ऐसे गुणी, उदारमना, योग्य पुरुष का अभिनन्दन करके सभा की गरिमा और बढ़ेगी। श्री सुन्दरलाल दुगड़ स्वस्थ रहते हुए शतायु हों और इनके उदार हाथों से बड़े-बड़े से सेवा के कार्य हों, ऐसी मंगलकामना के साथ मेरे साथ कार्य करने वाले सभी सहयोगियों को धन्यवाद देता हूं आठ दशक की यात्रा पूरी करके शताब्दी तक की यात्रा इस सभा की ज्यादा गतिशील हो, लोकोपकारी हो, देश एवं समाज की आकांक्षा के अनुरूप कार्य हो, ऐसी मंगल-कामना है। गोस्वामी तुलसीदासजी की इस चौपाई से मैं अपनी बात समाप्त करता हूँ "परहित बस जिनके मन मांही। तिन कंह दुर्लभ कछु जग नाहीं। ० अष्टदशी ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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