Book Title: Ashtdashi
Author(s): Bhupraj Jain
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Sabha Kolkatta

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Page 4
________________ सम्पादकीय जीवेम शरदः शतम् उपनिषदकारों ने व्यक्ति को आशीर्वाद देते हुए इसमें दीर्घायुष्य की कामना की है। व्यक्ति ही नहीं संस्थाओं के लिए भी यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ मात्र सौ वर्ष जीने का ही नहीं है, यह तो इसका शाब्दिक अर्थ है वस्तुत: निरामय, निरापद रहते हुए, सेवा धर्म का निर्वाह करते हुए दीर्घायुष्य प्राप्त करना है। ईसाई मिशनरीज, रामकृष्ण मिशन जैसी संस्थाएं मानव-सेवा एवं लोक-कल्याण के क्षेत्र में वर्षों से सफलता पूर्वक कार्य कर रही है एवं दिनों-दिन मानव सेवा ही नहीं प्राणीमात्र की सेवा कार्यों का विस्तार हो रहा है एवं सेवा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे हैं, नई उंचाइयों को छू रहे हैं। सन् १९२८ में संस्थापित श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा कोलकाता ने भी जैन दर्शन के रत्नत्रय-सम्यक् ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र को आधार बनाकर शिक्षा, सेवा एवं साधना के लक्ष्य से मानव सेवा के क्षेत्र में कदम रखा एवं उत्साही, कर्मठ, सेवाभावी तथा अथक अध्यवसायी कार्यकर्ताओं ने शीघ्र ही उसकी लोककल्याणकारी प्रवृत्तियों एवं क्रियाकलापों को न केवल गति प्रदान की अपितु नये-नये आयामों को जोड़ा एवं उसके मानव-सेवी प्रकल्पों का विस्तार भी किया। कर्मवीर एवं कर्मयोगी वही होता है जो कठिन एवं टेढ़े-मेढ़े रास्तों से चलते हुए मंजिल को प्राप्त करता है। तूफानी एवं ऊँची लहरों से जूझते हुए अपनी जीवन-नौका को किनारे तक ले जाता है, वही सफल नाविक और मल्लाहा है। ये जितने आविष्कार हुए हैं, ऐसे ही कर्मवीरों एवं कर्मयोगियों की देन हैं जिन्होंने अथक परिश्रम, अध्यवसाय, सतत संकल्प एवं अबाधित होकर सफलता प्राप्त की है। संस्थाओं की सफलता भी ऐसे ही कर्मठ सेवाभावी, कार्यकर्ताओं के स्नेह, सौजन्य एवं उदारता से प्रगति पथ पर अग्रसर रहती है, अकुंठ भाव से। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा, कोलकाता के आठ दशक भी ऐसी ही लोक-कल्याणकारी कार्यों की दास्तान है जिसने इसके मानवसेवी एवं जनोपकारी सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की दृष्टि से शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं और कोलकाता की सेवाभावी संस्थाओं में अग्रणी स्थान रखती है। आठ दशक से निरन्तर सेवा कार्यों में लगे रहना इसकी परिपक्वता की ऐसी कहानी है जो अत्यन्त रोचक एवं लोकप्रिय है। ___ बुक बैंक इसकी ऐसी प्रवृत्ति है जिसकी महक पश्चिम बंगाल के ग्रामीण अंचलों में सर्वाधिक व्याप्त है। इसके द्वारा संचालित कम्प्युटर केन्द्र एवं सिलाई केन्द्र समय की मांग को न केवल पूर्ति कर रहे हैं अपितु सेवा का एक नया इतिहास ही रच रहे हैं। ० अष्टदशी ० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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