Book Title: Ashtapad Maha Tirth 01 Page 001 to 087
Author(s): Rajnikant Shah, Kumarpal Desai
Publisher: USA Jain Center America NY

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Page 79
________________ Shri Ashtapad Maha Tirth तब वृषभसेन गणधर ने वियोग से विलाप करते हुए उस चक्रवर्ती को समझाया और सब लोगों का पूर्व वृतान्त कहा ।।१८।। हे चक्रवर्ती ! हम सबका और भगवान् आदिनाथ का सम्बन्ध सुनो। जो इस विचित्र संसार रूपी जंगल में अनेक भवों में घूमते हुए प्राप्त हुआ ।।१९।। जब आठ भव पहले भगवान् वज्रजंघ थे तब तुम उनके हितकारी मतिवर नामके मंत्री थे। जो उनका अकम्पन नामका मंत्री था वह बाहुबली राजा हुआ और उसकी जो अनुन्दरी नामकी बहिन थी वह तुम्हारी ब्राह्मी नामकी बहिन हुई है ।।२०-२१ ।। जो आनन्द नामका पुरोहित था वह सुन्दरी नामकी बहिन हुई है और श्रीमती के जो वीरबाह आदि पुत्र थे वे सब हम लोग हुए हैं ।।२२।। हम लोगों ने, तपकर तथा चार आराधनाओं का आराधनकर आद्य ग्रैवेयक में अहमिन्द्र पद पाया था ।।२३।। -16 39 Puran Sarsangrah

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