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जैन साहित्य प्रचारक समिति आगरा के अधिकारी संठ तखतसिंह जी बोहरा आदि ने 'देश्य खंड' यहाँ मंगा लिया, और सेठ रतनलाल जी मित्तल के प्रबन्ध में एज्यूकेशनल प्रेस में मुद्रण शुरू हुआ। हर्ष है कि मित्तल जी की प्रेरणा तथा एज्यूकेशनल प्रेस के स्वामी बाबू जगदीशप्रसाद बी० काम. के सौजन्य से बहुत सुन्दर एवं शीघ्रता के साथ मुद्रण कार्य पूर्ण हुआ, और जो कोष एक वर्ष से अधिक काल तक मुद्रण के झमेले में झूल रहा था, वह प्रकाशित होकर अब पाठकों के समक्ष आने पाया है।
उक्त कोष के साथ बहुत से महानुभावों का स्मरणीय सम्बन्ध लगा हुआ है । (१) सब से बढ़कर शताबधानी जी महाराज हैं, जिन्होंने अथक परिश्रम करके इस महान कार्य को पूर्ण किया, और समाज को एक बहुमूल्य पुस्तक प्रदान किया। (३) श्रीमान् लाला केदारनाथजी रुघनाथदास जी ने उक्त भाग के प्रकाशन का अर्थ भार उठाकर बहुत प्रशंसनीय सहयोग दिया है। कई वर्षों से जो प्रकाशन की समस्या अड़ी हुई थी, उसका हल आपकी उदारता ने सहज में ही कर दिया । (४) कोष प्रबंधक समिति के अधिकारी गणों का सहयोग भी कुछ कम उल्लेखनीय नहीं है । मुद्रण आदि की व्यवस्था करना, और प्रकाशन सम्बन्धी सभी समस्याओं का हल करना, आप सज्जनों का ही काम था जो आसानी के साथ कर दिया, अन्यथा यह काम शीघ्र पूर्ण होने वाला नहीं था। (५) आगरा के सेठ तखतसिंह जी बोहरा तथा सेठ रतनलाल जी मित्तल का भी उत्साह प्रशंसनीय है । आगरे का प्रकाशन का समस्त श्रेय श्री आगरा संघ के उपरान्त आपको ही दिया जा सकता है । (६) श्रीमान मास्टर प्यारेलाल जी शुक्लेचा अागरा भी इस दिशा में संस्मरणीय हैं । कोष के प्रबन्ध के लिए आपको कितनी ही बार अपने आवश्यक कार्य छोड़ कर देहली जाना पड़ा। यहां भी प्रूफ संशोधन आदि कार्य बड़े प्रेम एवं उत्साह से किया । अतएव उक्त सभी महानुभावों का कोष की पूर्ति में हृदय से आभार माना जाता है एवं सधन्यवाद नामोल्लेख के द्वारा कृतज्ञता प्रकाशन किया जाता है ।
इस को छपवान का सम्पूर्ण आर्थिक एवं प्रबन्धक व्यवस्था मुख्यतया श्री कोष प्रबन्धक समिति देहली तथा अन्य श्री जैन साहित्य प्रचारक समिति ने करके प्रकाशन का श्रेय इस कॉम्स को दिया अतः वे विशेष धन्यवाद के योग्य हैं।
श्रीमान् बाबू चिरंजीलाल जी पल्लीवाल (आगरा) भी विशेष धन्यवाद के पात्र हैं । आपके पुस्तकालय के द्वारा कोष के संशोधन के लिए तथा अन्य साहित्य संपादन के लिए महाराज श्री को जो मुक्त हृदय से उदारतापूर्वक यथेच्छ रूप में सभी प्रकार के संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों की सहायता मिली है, वह कभी भुलाई नहीं जा सकती। आपका विशाल पुस्नकालय आगरा के लिये गौरव की वस्तु है और इसमें भी बिना किसी धार्मिक भेदभाव के सभी धर्मों के उच्चकोटि की दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह तो और भी अत्यधिक अभिनन्दनीय है। सं० १६६५
निवेदक--
मंत्री - पोष शुक्ल प्रतिपन् ।
श्री श्वे० स्था० जैन कान्फ्रेंस
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