Book Title: Arddhmagadhi Agam Sahitya me Shrutdevi Sarasvati
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ जून २००९ सुयदेवयाए णमिमो जीए पसाएण सिक्खियं नाणं । अण्णं पवयणदेवी संतिकरी तं नमसांमि ॥ जिसकी कृपा से ज्ञान सीखा है, उस श्रुतदेवता को प्रणाम करता हूँ तथा शान्ति करने वाली अन्य प्रवचनदेवी को नमस्कार करता हूँ । सुयदेवा य जक्खो कुंभधरो बंभसंति वेरोट्टा । विज्जा य अंतहुंडी देउ अविग्धं लिहंतस्स ॥ श्रुतदेवता, कुम्भधरयक्ष, ब्रह्मशान्तियक्ष, वैरोटयादेवी, विद्यादेवी और अन्तहुंडीयक्ष, लेखक के लिए अविघ्न (निविघ्नता) प्रदान करे । ६५ भगवती की लिपिकार (लेखक) की इस प्रशस्ति में श्रुतदेवता से अज्ञान के विनाश तथा श्रुतलेखन कार्य की निविघ्नता की कामना की गई। यद्यपि अर्धमागधी आगम साहित्य की यह प्रशस्ति श्रुतदेवी या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में सरस्वती का उल्लेख करती है, किन्तु हमे यह स्पष्ट रूप से जान लेना चाहिए कि यह ईसा की पांचवी से दसवीं शताब्दी के मध्य हुआ है और जिनवाणी से ही श्रुत, श्रुतदेवी और सरस्वती की अवधारणाएँ विकसित हुई है । यहाँ हमें यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि अर्धमागधी आगम साहित्य मात्र अंग, उपांग आदि अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य पैंतालीस या बत्तीस श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगम ग्रन्थों तक ही सीमित नहीं है । आगमों की नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियां भी इसी के अन्तर्गत आती है, क्योंकि इनकी भाषा भी महाराष्ट्री - प्रभावित अर्धमागधी ही है । अतः आगे हम निर्युक्ति और भाष्यों के आधार पर भी श्रुतदेवी या सरस्वती की अवधारणा पर चर्चा करेंगे । जहाँ तक अर्धमागधी आगमों के इस व्याख्या साहित्य का प्रश्न है, उसमें नियुक्ति साहित्य एवं भाष्य साहित्य में मंगलाचरण के रूप में हमें कहीं भी श्रुतदेवता की स्तुति की गई हो, ऐसा उल्लेख नहीं मिला। इनमें मात्र चार सरस्वतियों के उल्लेख हैं १. गीतरति गन्धर्व की पत्नी, २. ऋषभपुर के राजा की पत्नी, ३. सरस्वती नामक नदी और ४. आचार्य कालक की बहन Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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