Book Title: Arddhmagadhi Agam Sahitya me Shrutdevi Sarasvati
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ ६८ अनुसन्धान ४८ प्राचीन आगमों में तो सरस्वती या श्रुतदेवता जिनवाणी ही रही है । महानिशीथसूत्र में ही सर्वप्रथम यह कहा गया कि श्रुतदेवता मेरी अधीत विद्या को सिद्धि प्रदान करें । श्रुतदेवता एक देवी है, ऐसा उल्लेख सर्वप्रथम महानिशीथसूत्र के उद्धारक आचार्य हरिभद्र ( ८ वी शती) ने अपने ग्रन्थ पंचाशक प्रकरण में किया है। उसमें कहा गया है कि रोहिणि अंबा तह मंदउण्णया सव्वसंपयासोक्खा । सुयसंतिसुरा काली सिद्धाईया तहा चेव ॥ रोहिणी, अम्बा, मन्दपुण्यिका, सर्वसम्पदा सर्वसौख्या, श्रुतदेवता, शान्तिदेवता, काली, सिद्धायिका ये नौ देवता है । इसकी टीका में भी श्रुतदेवता की आराधना हेतु तप करने की विधि बताते हुए कहा गया है कि श्रुतदेवता की आराधना हेतु किए जाने वाले तप में ग्यारह एकादशी पर्यन्त उपवासपूर्वक मौन व्रत रखना चाहिए तथा श्रुतदेवता की पूजा करनी चाहिए । ज्ञातव्य है कि पूर्व में उल्लेखित पंचकल्पभाष्य में भी श्रुतदेवता को व्यन्तर जाति के देव बताया गया है । मेरी जानकारी में अर्धमागधी आगम साहित्य में इसके अतिरिक्त श्रुतदेवी या सरस्वती का कोई उल्लेख नहीं । उसमें अनेक जाति के देवदेवियों के उल्लेख तो हैं, किन्तु सरस्वती या श्रुतदेवी की मात्र जिनवाणी के रूप में ही चर्चा है, किसी देव या देवी के रूप में नहीं है । वह व्यन्तर देवी है, यह उल्लेख भी परवर्ती है । यद्यपि जैन सरस्वती की विश्व में सबसे प्राचीन प्रतिमा मथुरा से उपलब्ध होने से पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर इतना तो कहा जा सकता है कि जैनों में सरस्वती या श्रुतदेवी की अवधारणा प्राचीन किन्तु साहित्यिक उल्लेख परवर्ती युग के हैं । सर्वप्रथम हमें आगमेतरग्रन्थ पउमचरियं (विमलसूरि) एवं अंगविज्जा में उसके एक देवी के रूप में उल्लेख मिलते हैं ! पउमचरियं ( ३ / ५९) में सरस्वती का उल्लेख बुद्धिदेवी के रूप हुआ है जो इन्द्र की आज्ञासे तीर्थकरमाता की सेवा करती है । अंगविज्जा (५८ पृ. २२३) में भी उसे एक देवी माना गया है । इन दो उल्लेखों बाद सरस्वती का सीधा उल्लेख हरिभद्र के ८वीं शती के ग्रन्थों में ही मिलता है। अंगविज्जा और पउमचरियं का काल लगभग ईसा की दूसरी का माना गया में है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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