Book Title: Aprashakit Aramsohakaha Ek Parichay
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf

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Page 5
________________ मध्यकाल में यह प्रमुख दृष्टांत रहा है। कथा की लौकि- १२. शर्त तोड़ने पर देवता के वरदान का लुप्त होना कता के कारण इसे अधिक प्रसिद्धि मिली है। १३. नायिका द्वारा सौतेली मां एवं बहिन को क्षमा प्रदान हिन्दी संस्करण करना (६) आरामशोभाकथा को किसी हिन्दी लेखक ने १४. मुनि से पूर्व जन्म का वृत्तान्त-श्रवण स्वतन्त्र रूप से नहीं लिखा है। किन्तु प्राचीन कथा के १५. पति द्वारा जंगल में छोड़कर चले जाना आधार पर हिन्दी में उसका संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया है। १६. धर्म पिता सेठ द्वारा आश्रय देना श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री द्वारा सम्पादित जेन कथा, भाग ६६ १७. अपने अतिशय गुणों से धर्मपिता को संकट से बचाना में आराम शोभाकथा प्रस्तुत की गयी है। अमर चित्र १८. जिनमंदिर-निर्माण और जिनपूजा के फलस्वरूप कथा सीरिज में भी 'जादुई कुंज' के नाम से इस कथा को सद्गति प्रस्तुत किया गया है ।* १६. कर्मफल शृखला कथा के मानक रूप एवं अभिप्राय २०. वर्तमान जीवन की घटनाओं का तालमेल पूर्वजन्म आरामशोभाकथा एक लोककथा है। अतः इसमें की घटनाओं से बैठाना लोकतत्त्वों की भरमार है। इस कथा के मानक रूप इस इन मानकरूपों को देखने से पता चलता है कि प्रकार हैं: १-१३ तक के मानकरूप एक लौकिक कथा के हैं । उनका १. अकेली बालिका पर घर के कार्यों का भार जैनधर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। और १४-२० तक के २. सर्प का मनुष्य की वाणी में बोलना मानक-रूप किसी भी धर्म के साथ जोड़े जा सकते हैं। वस्तुतः आरामशोभा कथा में दो कथाओं को एक साथ ३. कृतज्ञ नागकुमार द्वारा साहस के कार्य के लिये वर मिला दिया गया है। __ दान देना। ४. छत्र के रूप में कुंज का आश्चर्य परवती कथाओं पर प्रभाव ५. राजा द्वारा गुणी गरीब कन्या से विवाह आरामशोभाकथा का मूल अभिप्राय माता-विहीन ६. सौतेली माता द्वारा सौतेली पुत्री को मारने का प्रयत्न पुत्री और सौतेली माता का स्वार्थ है। इस अभिप्राय ७. नागकुमार द्वारा अदृश्य रूप से सहायता को पूरी तरह व्यक्त करने के लिये कई कथाकारों ने लेखनी ८. कुँए में ढकेलना किन्तु वहाँ पर भी रक्षा चलाई है। सन् ११५० में अपभ्रंश कवि उदयचन्द्र ने 'सुगन्धदशमीकथा' लिखी है। इसकी कथा का उत्तरभाग ६. पुत्र-जन्म पर माँ को परिवर्तन कर देना आरामशोभाकथा से मिलता जुलता है। डा० हीरालाल १०. असली पत्नी को राजा के द्वारा बाद में पहिचान लेना जैन ने इसकी कळ समान विशेषताओं की ओर संकेत ११. पुत्र-दर्शन के लिये देवता की समय-मर्यादा की शर्त किया है । '• सौतेली बेटी की अवहेलना एवं अपनी ' श्री पुष्कर मुनि, जैन कथा, भाग ६६, उदयपुर, १६७६ । *'जादुई कंज' मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम' के जैन कहानियाँ, भाग १२, में प्रकाशित कथा पर आधारित है। लेखक ने जैन कहानियाँ में प्रकाशित कथा का उल्लेख नहीं किया है। इसका अंग्रेजी अनुवाद भी Jaina Stories में प्रकाशित है। -संपादक १. जैन, हीरालाल, सुगंधदशमीकथा, १६४., भूमिका, पृ० १८ । [ ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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