Book Title: Aprashakit Aramsohakaha Ek Parichay
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Bhanvarlal_Nahta_Abhinandan_Granth_012041.pdf

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________________ अप्रकाशित आरामसोहाकहा (पद्य) : एक परिचय - डॉ० प्रेम सुमन जैन सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर एक प्राकृत कथा साहित्य में आरामशोभाकथा महत्वपूर्ण लौकिक कथा है। जिनपूजा के महात्म्य को प्रतिपादित करने के उद्देश्य से यह कथा उदाहरण के रूप में कही गयी है । प्राकृत, संस्कृत, गुजराती एवं हिन्दी भाषा में आरामशोभाकथा को कई कथाकारों ने प्रस्तुत किया है। किन्तु मूल प्राकृत कथा अभी तक स्वतंत्र रूप से प्रकाशित नहीं हो सकी है। इस अप्रकाशित आरामसोहा कहा की पाण्डुलिपि मुझे लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति मंदिर, अहमदाबाद के ग्रन्थभण्डार का सर्वेक्षण करते समय २-३ वर्ष पूर्व प्राप्त हुई थी । प्राकृत गाथाओं में निबद्ध इस कथा की यह अभी तक उपलब्ध एकमात्र पाण्डुलिपि है । यद्यपि इस कथा की अन्य प्रतियां विभिन्न ग्रन्थभण्डारों में प्राप्त होने के संकेत हैं, किन्तु अभी वे उपलब्ध नहीं हो सकी हैं । आरामसोहाकहा की इस पाण्डुलिपि में कुल १० पन्ने हैं, जो दोनों ओर लिखे हैं । इसमें कुल ३२० प्राकृत गाथाएं हैं । किन्तु आदि अन्त में कोई प्रशस्ति नहीं है । अतः रचनाकार, लिपिकार आदि के सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं होता है। प्राकृत साहित्य के अन्य किसी ग्रन्थ में भी प्राकृत पद्यों में रचित आरामसोहाकहा एवं उसके Jain Education International कर्त्ता के सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है । अतः अभी इस रचना को अज्ञातकतृक ही मानना होगा । आरामसोहाकहा की परम्परा एवं अन्य पाण्डुलिपियों के सम्बन्ध में विचार करने के पूर्व इस कथा को संक्षेप में प्रस्तुत करना उपयोगी होगा । कथा वस्तु जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुशार्त देश है । वहाँ के बलासक नामक ग्राम में अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण रहता था । उसके ज्वलनशिखा नामक पत्नी थी। उनके विद्युत्प्रभा नामक पुत्री थी। जब वह आठ वर्ष की थी तभी किसी रोग से पीड़ित होकर उसकी मां का देहावसान हो गया । तब घर का सारा काम विद्युत्प्रभा के ऊपर आ पड़ा । गायों को चराने, घर का काम करने और पिता की सेवा टहल करने में वह बहुत थक जाती थी । अतः एकदिन उसने पिता से कह दिया कि वह दूसरी शादी करके पत्नी ले आवे । इससे उसे घर के कामों से छुटकारा तो मिलेगा । किन्तु विद्यत्प्रभा की जो सौतेली मां आयी वह इतनी आलसी और कुटिल थी कि विद्युत्प्रभा को पहले जैसा ही घर-बाहर के कार्यों में अकेले जुटना पड़ता था । इसे वह अपने कर्मों का फल मानती हुई सहन करने लगी । एकवार विद्युत्प्रभा जब गायों को चरा रही थी तो वहाँ उसने एक सांप रूपी देवता की प्राण रक्षा की। इससे प्रसन्न होकर उस नागदेवता ने उसे वरदान दिया कि उसके सिर पर एक हरा-भरा कुंज ( आराम ) सदैव बना रहेगा, जिससे उसे कभी धूप नहीं लगेगी । यह कुंज एकदिन आवश्यकतानुसार छोटा-बड़ा होता रहता था । पाटलीपुत्र के राजा जितशत्रु ने विद्युत्प्रभा के साहस और कुंज से प्रभावित होकर उसे अपनी पटरानी बना लिया । विद्युत्प्रभा को वह आरामशोभा के नाम से पुकारने लगा । उनके दिन सुख से व्यतीत होने लगे । इधर आरामशोभा की सौतेली मां के एक पुत्री उत्पन्न हुई । उसके जवान होने पर उस सौतेली मां ने चाहा कि जितशत्रु राजा आरामशोभा के स्थान पर उसकी पुत्री को पटरानी बना ले। अतः उसने गर्भवती आराम [ ८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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