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जैन से भी बहुमूल्य सुझाव प्राप्त हुए। प्रतएव मैं आप दोनों महानुभावों को हृदय से धन्यवाद देता हूँ । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन दर्शन के प्रोफेसर श्री महेन्द्र कुमारं न्यायाचार्य से भी मुझे समय-समय पर समस्याओं के समाधान प्राप्त होते रहे । खेद है कि वे अकाल ही काल कवलित हो गए और मेरे कार्य को प्रकाशित होते न देख सके । यदि मुझे काशी में भदैनी स्थित श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के प्रधानाचार्य पं० कैलास चन्द्र शास्त्री अपने विद्यालय का पुस्तकालय सुलभ न कर देते, तो दुर्लभ जैन ग्रन्थों की प्राप्ति कदापि सम्भव न होती । एतदर्थ में उनको तथा पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री अमृतलाल कोकिन शब्दों में धन्यवाद दूँ ? मैं उनका आभारी हूँ | मैं काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अधिकारियों का भी आभार स्वीकार करता हूँ, जिनकी कृपा से सभा के पुस्तकालय के सारे खोज विवरण, पाण्डुलिपियाँ, और पत्र-पत्रिकाओं की पुरानी फाइलें सुलभ हो सकीं। ये सभी सज्जन हमारे धन्यवाद के पात्र हैं ।
मैं पूज्य आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी को धन्यवाद देने को धृष्टता नहीं कर सकता । न मेरे इस शोध कार्य में ही, अपितु पूरे व्यक्तित्व के निर्माण
श्रद्धेय द्विवेदी जी का वरद हस्त रहा है। मैं उनका चिर ऋणी हूँ : पूज्य डा० मुन्शीराम जी शर्मा ने जिस स्थिति में कृपाकर, अधूरे कार्य को पूरा करने में सहायता दी, वह उनके सहज प्राप्य सरल स्वभाव की सामान्य विशेषता है । मैं आपके समक्ष नत शिर हूँ ।
इस प्रबन्ध के प्रकाशन में काशी विद्यापीठ, मुद्रणालय के व्यवस्थापक श्री शिवमूर्ति पाठक ने जो तत्परता दिखाई है, उसके लिए वह तथा उनके अन्य सहयोगी कार्यकर्ता हमारे धन्यवाद के पात्र हैं ।
हिन्दी विभाग
काशी विद्यापीठ, वाराणसी फाल्गुन पूर्णिमा, सम्बत् २०२२
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बासुदेव सिंह