Book Title: Apbhramsa Chariu Kavyo ki Bhashik Samrachnaye Author(s): Krushnakumar Sharma Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 2
________________ इसी प्रकार भगवान का एक सन्दर्भ जंबुसामिचरिउ में द्रष्टव्य है तहो तले कणय रयणहरि - विट्ठरे, किरणाहयसुरिद सेहरकरे ॥ पत्तपत्ततिछत्तालकिए. देवकुमार भुक्ककुसुमं किए ॥ दुन्दुहिसद्ध नियपडिसद्दए "I पामरकर पसर महुए, दिव्वए सव्वाणि परिमाणिए, सयल भाससंबलिए वाणिए । 11 घामंडलमसाठिउ इस प्रसंग की भाषिक संरचना है क्रि० वि० पदबंध + विशेषण ष० बं, + वि० प० बं2 + उपर्युक्त प्रसंग में विशेषण पद बन्ध, + • संरचना है और विशेषण पदबन्ध भी अपभ्रंश चरिउ काव्यों की भाषिक संरचनाएं " रचना का ही आवर्तन हुआ है। + वि० प० बंधू दोनों प्रसंगों में एक अन्तर है कर्ता प० बं० के नियोजन का । अन्यथा क्रि० वि० से प्रारम्भ संरचना में समान संरचनावाले विशेषण पदबन्धों का आवर्तन दोनों उद्धरणों में है । इस प्रकार का आवर्तन विशेष्य की एक-एक विशेषता की पर्तें क्रमशः खोलता जाता है । रचयिताकृत शब्दचयन, बिम्बनिर्मायक तत्व चयन, प्रतीक चयन आदि का कौशल इस आवर्तन में स्पष्ट देखा जा सकता है । णायकुमारचरिउ में सरस्वती वर्णन का निम्नलिखित प्रसंग भी आवर्तन के चमत्कार का उदाहरण है दुबिहालंकारे विष्णुरंति, लीला कोमलई दिति ॥ महकवणिणि संचरंति, बहुहावभावविन्मम धरति ॥ सुपसत्यें अत्यं दिहि करंति, सव्वई विष्णाणई संभरति ॥ पोसेस देसभासद चयंति, लक्खण विसिट्ठई बस्यति ॥ मुक्तरूपिम = बद्धरूपिम 'टा' + क्रियापद Jain Education International "विशेषण पदबन्धक + विशेष्य प० बं , करकंड चरिउ में शील मुनि के सन्दर्भ की निम्नलिखित संरचना भी द्रष्टव्य है जसु दंसणे हरि उवसमु सरेइ करिकुम्भहो गाहु ण सो करेइ ॥ अवरुप्परु वइरइ जे बहंति, तहो दंसणे महुउ मणे लिहति ॥ जमु दंसणे अणुवय के विलिति, जिणु छांडव अन्यहि मणुर्णाविति ॥ ५०३ - ( जंबुसामिचरिउ, संधि १, १७) *** - (करकंडुचरिउ, संधि ६, १ ) इस पाठांश में 'जसु....संरचना का आवर्तन हुआ है । 'मयणपराजय' में भी यह स्थिति देखने को मिलती है For Private & Personal Use Only - ( गावकुमारचरित संधि १,१) कमल कोमल कमलकंतिल्ल कमलंकिय कमलगय कमलहणणसिहरेण अंचिय । कमलापिय कमलापिय कमलमवहि कमलेहि पुज्जिय । न केवल पदबन्धों का वरन् रूपिम का भी आवर्तन कवि ने किया है । वर्णत प्रसंग में इस प्रकार का संरचना आवर्तन अपभ्रंश के चरिउकाव्यों की विशेषता है। वर्णन प्रसंग से प्रतिबद्ध होने के कारण यह संरचना प्रयोग अपभ्रंश'काव्यों का एक शैलीचिह्नक है । www.jainelibrary.org.Page Navigation
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