Book Title: Apbhramsa Chariu Kavyo ki Bhashik Samrachnaye
Author(s): Krushnakumar Sharma
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 6
________________ एक और बहुप्रयुक्त संरचना प्रकार है "विशेषण " "1 23 कर्त्ता (प्रतीक रूप में ) प्रमुख क्रिया । जंबुसामिचरिउ में इस संरचना का प्रयोग देखें- Jain Education International भग्गभूवल्लिसोहो सामियालयालिमालो अपभ्रंश चरिउकाव्यों की भाषिक संरचनाएँ हरियाहरपालवारणच्छा हवचंदन सिलयपराई अहली कयपुफ्फपरिणामो ॥ रिवरमणीरष्मजोव्ययणे । कोहदुब्वायवेउ नरवइणो जस्स निव्वडिओ || ।। गय दियहा ।।। जोव्वणु ल्हसिउ देव ।। ।। गइ तुट्टिय विहडिय सन्धिबन्ध ।। लोयण णिरन्ध || ।। ण सुणन्ति कण्ण ।। ।। सिरु कंपई ।। मुहे पक्खलइ वाम ।। ।। गय दन्त । । सरीर हो गट्ठ छाय ।। (१-११-४-५) अधिकांशतः वैशेषिक संरचनाओं का प्रयोग अपभ्रंश काव्य में हुआ है । किन्तु जहाँ सामान्य संवाद है अथवा कथा-प्रवाह है, वहाँ सीधी-सरल संरचनाएँ हैं। जहाँ व्यक्ति की मानसिकता व्यक्त की गई है, वहाँ भी यही स्थिति है और यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि व्यक्ति अलंकार-संरचनाओं में चिन्तन नहीं करता, दुःख अथवा ग्लानि के वैचारिक संदर्भ में भी अलंकार संरचनाओं का प्रयोग विरल ही है । पउमचरिउ में कंचुकी अपनी अवस्था का वर्ण करता है— के दिवस वि होसह आरिसा कञ्चइ अवस्थ अम्हारिसा ।। को हवं, का महि, कहो तदब्बु । सिहासणु छत्तई अथिरु सब्बु । जोम्बणु सरीद जीवि धिगत्यु संसारु असारु अणत्थु अत्थु ॥ विसु विसय बन्धु दिढ बन्धणाई । घर दारइ परिभव कारणाई ॥ उपवाक्य "1 ++ 27 For Private & Personal Use Only और कंचुकी के इन लघु, पर व्यंजक उपवाक्यों को सुनकर दशरथ को जीवन से ग्लानि हो जाती है, परिणामतः वैराग्य होता है, दशरथ की विचार तरंगें भी इसी प्रकार के लघु वाक्यों में व्यंजित है, पूरा पाठांश इन्हीं संरचनाओं का गुच्छ है। यद्यपि से पृथम्-पृथक् उपवाक्य से लगते हैं, पर कथ्य इन्हें परस्पर संसक्त कर देता है। ऐसी संरचना व्यक्ति के मन में होती ऊहापोह की व्यंजना हेतु समुचित होती है ५०७ जहाँ ऐसी स्थिति में भी अलंकार संरचना का अधिक प्रयोग होता है, वहाँ यह मानना होगा कि रचयिता ही पात्र के चरित्र में मुखर हो रहा है तब उस प्रसंग में कृत्रिमता का आभास भी स्पष्ट होगा । सम्पूर्ण चरिउ काव्यों के अवगाहन से इन काव्यों में प्रयुक्त संरचनाओं का उद्घाटन किया जा सकता है। भाषा की प्रत्येक संरचना का अपना obo os too www.jainelibrary.org.

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