Book Title: Anuyoga Dwar Sutra
Author(s): Aryarakshit, Shivchandra Porwal
Publisher: Ratlam

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ यं स्पाइतिवनिरुपाधिक उ० सं० संध्या ते उत्कृष्ट संष्पा ताने विश्ररु० एकरुप ते जेवप्र सेवा इतिवारे जब्ज घन्नपरित संख्या होइए रुवं पतिजन्नये परिता संखेा येन वा | नेते राति परितम सेष्पाता नाम अजघन तक मध्यम संख्याता सथानक‍ । तेणपरंप्रजहन्नम लुकोसा गला इजा वक्को से बे इर कतलुऊ तत्रासंब्या कि० ॥ जन्नय हे करील तिवा है जावत परितासं नक्रष्टयरत प्रसंब्याउन वाम वे ढानपावरको सपरिता । सेवाय कितिही तेतला माल नाज धनपरितन्म संख्याताथा ते माहि० एकरूप शसि ते हनोल पत्र न्यास एक परत जहनपरिता संखमेता पत्र लमन्तभा सोरुणो ॥ माहिएप पर सरेगुणाकार की तेयाचा ६२५ ले वाचा ३१२५ घ पाच पंचा २५-ते व लीची जा पा च मामाथ नय काम से एक रूप हीन दोश्व डिपुन्नी (गुलीए १२५ जहन्न तु तासं ये हो ॥ अथवा उत परिसंख्पर ताने विष एकरुप से पीए ति बाज घे नोने ते ना २१२५ रुपमा तिपूजिबन्त यक्तप्रसंष्पाऊ खेळाएवं परिखिर्त । जन्नह यता से रखे हाय हा लयुक्त असे ध्याता न विधेसी) नम० मध्यम तत्र संख्या | जावतत सब नारा तना स्वान क तेल परंत्र जेहन मलुकोसाहाला जावन की सकुत्ता से खेएनया व श् ष्यात जे तलाव मालनु होइ परिता स खेाये। राजाले के रुपज धन्न परिसं ष्याते ह नारा सिपापा पाप इम उक्को सेयं ॥ परितासेव्याय उत परिताष्पा ते २१२४ प्रमाता स्त कल्पना ए श्रहवाको सल्य रितासं मालिकाना समग्रप ए तेत लाज जे तलाज घ व्यवलयावि। ततियाञ्चेवर युक्तमष्पाञ्जन | सिमपु

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200