Book Title: Anuvrat aur Anuvrat Andolan Author(s): Satishchandra Jain Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 5
________________ oto on to a too ३१६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड ३. मैं अवैध मतदान नहीं करूँगा । ४. मैं चरित्र व गुणों के आधार पर अपने मत का निर्णय करूंगा ५. मैं किसी उम्मीदवार या दल के प्रति अश्लील प्रचार व निराधार आक्षेप नहीं करूँगा । ६. मैं किसी चुनाव सभा या अन्य कार्यक्रमों में अशांति या उपद्रव नहीं फैलाऊँगा । उम्मीदवार के लिए १. मैं रुपये व अन्य प्रलोभन तथा भय दिखाकर मत ग्रहण नहीं करूँगा । २. मैं जाति-धर्म आदि के आधार पर मत ग्रहण नहीं करूंगा । Jain Education International ३. मैं अवैध मत ग्रहण करने का प्रयास नहीं करूँगा । ४. में सेवा भाव से रहित केवल व्यवसाय बुद्धि से उम्मीदवार नहीं बनूंगा। ५. मैं अपने प्रतिपक्षी उम्मीदवार या दल के प्रति अश्लील प्रचार व निराधार आक्षेप नहीं करूँगा । ६. चुनाव सभा या अन्य कार्यक्रमों में अशांति व उपद्रव नहीं फैलाऊँगा । ७. मैं निर्वाचित होने पर बिना पुनः चुनाव के दल-परिवर्तन नहीं करूँगा । विधायक के लिए १. मैं विधान या कानून के निर्माण में निष्पक्ष रहूंगा। २. मैं किसी एक दल के टिकट से निर्वाचित होकर दिना पुनः चुनाव के दल परिवर्तन नहीं करूँगा । ३. मैं विरोध के नाते विरोध और पक्ष के नाते पक्ष नहीं करूँगा । ४. मैं सदन की शिष्टता का उल्लंघन नहीं करूँगा । मैं ५. राष्ट्र की भावात्मक एकता के विकास में प्रयत्नशील रहूँगा । अन्तर्राष्ट्रीय आचार-संहिता १. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण न करे । २. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की भूमि व सम्पत्ति पर अधिकार करने की चेष्टा न करे । ३. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की आन्तरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप न करे ४. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ मतभेद की स्थिति में समन्वय की नीति अपनाये । ५. निःशस्त्रीकरण का प्रयास हो । ६. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अपनी शासन पद्धति व विचारधारा को न थोपे । इस प्रकार अणुव्रत का यह विधान जीवन जीने की कला, नैतिक क्रांति का विचार वाहक, सही सामाजिक मूल्यों का प्रतिष्ठापक, मानव की भावनात्मक एकता का मार्गदर्शक एवं विश्व शांति के सुन्दर समाधान रूप में आपके समक्ष समुपस्थित है । युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आन्दोलन किसी एक समाज और वर्ग का नहीं, वह समस्त मानव समाज के हित के लिए है। देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि विभिन्न प्रकार के वर्ग हैं। सबके उपासना के प्रकार और उपास्य के नामों में भिन्नता है। उनके उद्देश्य भी भिन्न हो सकते हैं, किन्तु युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के प्रवचनों का सार यह है कि उपासना के प्रकार और भाषा में भिन्नता होते हुए भी व्यक्ति अपने धर्म को नहीं छोड़े । वह धर्म है - सत्य और अहिंसा । इस तथ्य में किसी का विरोध नहीं हो सकता । मन्दिर में जाकर भगवान की पूजा कर लेना तथा बड़े-बड़े तीर्थों की यात्रा कर लेना तो किन्तु धर्म को जीवन-व्यवहार में स्थान देना बहुत कठिन है । व्यवहार में धर्म उतारे बिना यह अपने For Private & Personal Use Only आसान है, उपास्य के www.jainelibrary.org.Page Navigation
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