Book Title: Anuvrat aur Anuvrat Andolan Author(s): Satishchandra Jain Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 7
________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड ......................................................................... टाइम्स (नई दिल्ली), हिन्दुस्तान स्टेण्डर्ड (कलकत्ता), आनन्द बाजार पत्रिका, हरिजन सेवक, टाइम (न्यूयार्क) आदि पत्रों में प्रशंसात्मक निबन्ध प्रकाशित हुए। पत्रों में होने वाली उस प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है कि मानो ऐसे किसी आन्दोलन के लिए मानव-समाज भूखा और प्यासा बैठा था / प्रथम अधिवेशन पर उसका वह स्वागत आशातीत और कल्पनातीत था। आन्दोलन का लक्ष्य पवित्र है, कार्य निष्काम है, अतः उससे हर एक व्यक्ति की सहमति ही हो सकती है। जब देश के नागरिकों की संकल्प शक्ति जागरित होती है, तब मन में मधुर आशा का एक अंकुर प्रस्फुटित होता है / भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन, भूतपूर्व प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू, यूनेस्को के भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ० लूथर इवान्स, सुप्रसिद्ध विचारक काका कालेलकर, श्री राजगोपालाचारी, जे०बी० कृपलानी, हिन्दी जगत् के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र कुमार, श्रीमन्नारायण, श्रीमती सुचेता कृपलानी आदि कई नेताओं एवं विचारकों ने अणुव्रत आन्दोलन की मुक्तकण्ठ से सराहना की। आन्दोलन का मुख्य बल जनता है। उसी के आधार पर इसकी प्रगति निर्भर है। यों सभी दलों तथा सरकारों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है। सबकी शुभकामनाएँ तथा सहानुभूति उसने चाही हैं और वे उसे हर क्षेत्र से पर्याप्त मात्रा में मिलती रही हैं। जन-मानस की सहानुभूति ही उसकी आवाज को गांवों से लेकर शहरों तक तथा किसान से लेकर राष्ट्रपति तक पहुँचाने में सहायक हुई है। आन्दोलन ने न कभी राज्याश्रय प्राप्त करने की कामना की है और न उसे इसकी जरूरत ही है। फिर भी राज्य सभा, लोकसभा, कई विधान सभाओं व विधान परिषदों में अणुव्रत-आन्दोलन विषयक प्रश्नोत्तर चले एवं प्रशंसा प्रस्ताव पारित हुए। विचार प्रसार के लिए साहित्य द्वारा जीवन-परिशोध की प्रेरणाएँ दी गईं। समय-समय पर विचार-परिषदों, गोष्ठियों, प्रवचनों तथा सार्वजनिक भाषणों का क्रम प्रचलित किया गया। परीक्षाओं का आयोजन प्रारम्भ किया गया। अणुव्रत विद्यार्थी-परिषदों की स्थापना की गई। केन्द्रीय अणुव्रत समिति की स्थापना भी आन्दोलन के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। समिति द्वारा प्रचुर साहित्य का प्रकाशन किया गया और अणुव्रत नामक पाक्षिक पत्र का प्रकाशन निरन्तर कर रही है। नैतिक विचार क्रान्ति की आधारशिला लिए अणुव्रत का स्वर आन्दोलन के रूप में निखरा और आज यह अहिंसक समाज-व्यवस्था के अनुरूप सामाजिक एवं वैयक्तिक आदर्शों का प्रतीक बन गया है। अणुव्रत आज एक ऐसी आचार संहिता है जो राष्ट्रनायकों, साहित्यकारों एवं विचारकों की दृष्टि में जन-जन के लिए व्यवहार्य है। स्वस्थ समाज-निर्माण की यह आधारभूत चरित्र-रेखा है। इस प्रकार अणुव्रत आन्दोलन आज के भारत के पतनोन्मुख समाज का एकमात्र उद्धारक एवं पथ-प्रदर्शक है। इसमें राष्ट्रीय जीवन को एक नूतन स्वास्थ्यकर और ऊर्ध्वगामी दिशा में अग्रसर करने की प्रबल शक्ति है। हम आशान्वित हैं कि यह आन्दोलन और अधिक विकसित होगा तथा जन-जन के लिए भाग्य बनेगा, अस्तु / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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