Book Title: Anuvrat aur Anuvrat Andolan
Author(s): Satishchandra Jain
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुव्रत और अणुव्रत आन्दोलन श्री सतीश चन्द्र जैन 'कमल' [जैन वासण भण्डार 'नागरवेल हनुमान' सुखरामनगर, अहमदाबाद-२३ (गुजरात)] आज संसार में एक बड़ी विचित्र बात देखने में आती है। हम पुराणों के जिस देवासुर-संग्राम की चर्चा सुनते थे, वह आज प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। एक ओर मनुष्य विज्ञान की प्रगति के नाम पर विनाशकारी यन्त्रों के निर्माण एवं अनुसन्धान में पागल हो रहा है, दूसरी ओर वही मानव उनसे त्राण पाने के उपाय सोचने में व्यग्र है। वह उनका उपयोग अपने कल्याण के लिए करना चाहता है, विनाश के लिए नहीं । एक साथ घृणा और सहयोग के मार्ग पर चलता हुआ मानव आज जैसे खो गया है। जैसे अनन्त शक्ति की खोज में वह अशान्त होकर शान्ति की पुकार लगा रहा है । देवासुर-संग्राम में जो स्थिति तब हुई थी, जब सागर से हलाहल का जन्म हुआ था, वही स्थिति आज दिखाई दे रही है। अमृत की खोज में जैसे मानव के हाथ में हलाहल ही आ गया है । इस हलाहल के अग्नि-दाह से सम्पूर्ण चराचर संत्रस्त है, लेकिन शंकर का कहीं पता नहीं लग रहा है । न जाने किस दिन उस नीलकंठ का उदय होगा और यह त्रस्त मानवता त्राण पा सकेगी और तभी अमृत का उदय होगा। गांधीजी का कहना था--देश के लोग शुद्ध हों, सेवापरायण हों। वे स्वराज्य का भी ऐसा ही अर्थ करते थे। वे जीवन भर इसके लिए चेष्टा करते रहे। आज हमारे देश को स्वराज्य प्राप्त है, पर जो काम हो रहा है, उससे उतना लाभ नहीं होता, जितना लाभ होना चाहिए। करोड़ों रुपयों का गबन हो रहा है । ऊँचे-ऊँचे स्थानों पर लोग भाई-भतीजावाद में संलग्न हैं। बड़े खेद और राष्ट्रीय चिन्ता का विषय है कि हर विभाग में आज रिश्वतखोरी है, चोर बाजारी है । राष्ट्र में यह बहुत बड़ी व्याधि है । इसका असली कारण है, सच्चरित्रता का अध:पतन । हम आज स्वतन्त्र राष्ट्र की अट्टालिका बना रहे हैं, किन्तु उसके सिद्धान्तों को पक्का करना होगा। उसके सिद्धान्त हैं—-सदाचार और सच्चरित्रता। अणुव्रत आन्दोलन : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि संवत् २००५ में आचार्य श्री तुलसी छापर में पावस प्रवास कर रहे थे। एक दिन वहाँ उनके पास बैठे हुए कुछ व्यक्ति नैतिकता के विषय में बात कर रहे थे। उनमें से एक ने निराशा के स्वर में कहा-इस युग में नैतिकता कोई रख ही नहीं सकता। इस भाई के इन शब्दों से आचार्यश्री के मन में उथल-पुथल मच गई। उसी दिन प्रातःकालीन प्रवचन सभा में ऐसे पच्चीस व्यक्तियों की माँग की जो अनैतिकता के विरुद्ध अपनी शक्ति लगा सकें, नैतिक रह सकें। वातावरण में गम्भीरता छा गई। सहसा सभा में से कुछ व्यक्ति खड़े हुए और उन्होंने अपने नाम प्रस्तुत कर दिये । एक-एक कर २५ नाम आचार्यश्री के पास आ गये । उस दिन की यह छोटी-सी घटना ही अणुव्रत आन्दोलन के लिए नींब की प्रथम ईंट बन गई। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुव्रत और अणुव्रत आन्दोलन ३१३ प्रारम्भ में केवल यही भावना थी कि जो लोग प्रतिदिन सम्पर्क में आते हैं, उनका नैतिकता के प्रति प्टिकोण बदले। फलस्वरूप जिन व्यक्तियों ने अपने नाम प्रस्तुत किये थे, उनके लिए नियम-संहिता बनाई गई एवं राजलदेसर में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आदर्श श्रावक संघ के रूप में वह योजना जनता के सम्मुख रखी गई। इस योजना में भी सुधार के दरवाजे खुले रखे गये। धीरे-धीरे इस योजना के लक्ष्य को विस्तृत कर सबके लिए एक सामान्य नियम-संहिता प्रस्तुत की। फलस्वरूप सर्वसाधारण के लिए रूपरेखा निर्धारित हो गई और संवत् २००५ में फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को सरदार शहर में आचार्य श्री ने अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन किया। इसी सन्दर्भ में आचार्यश्री की नव-सूत्री योजना और तेरह-सूत्री योजना के द्वारा लगभग तीस हजार व्यक्तियों को नैतिक उद्बोधन मिल चुका था। इस प्रकार अणुव्रत आन्दोलन के लिए सुदृढ़ भूमिका तैयार हो गई। प्रारम्भ में अणुव्रती व्यक्तियों के संगठन का नाम अणुव्रती संघ रखा गया। फिर एक सुझाव आया कि संघ संकुचित शब्द है, जबकि आन्दोलन अपेक्षाकृत मुक्त एवं विशाल भावना का परिचायक है। सुझाव मानकर इसका नाम अणुव्रती संघ से अणुव्रत आन्दोलन कर दिया गया। निर्देशक तत्त्व- इसके निर्देशक तत्त्व कुछ इस प्रकार निर्धारित किये गये :-.- १. अहिंसा-जैन धर्म अहिंसा की मूल भित्ति पर टिका हुआ है । अहिंसा जैन धर्म की आत्मा है। किसी को जान से न मारना ही अहिंसा नहीं है, अपितु किसी के प्रति मन में दुश्चिन्तन व खराब भावना नहीं करना भी अहिंसा है। किसी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग न करना, निर्दयतापूर्वक व्यवहार न करना, शोषण नहीं करना, रंग-भेद या भाषायी आधार पर किसी मनुष्य को हीन या उच्च नहीं समझना, सह-अस्तित्व में विश्वास रखना, किसी के अधिकारों का अपहरण न करना भी उच्च कोटि की अहिंसा है। २. सत्य-'सत्यमेव जयते नानृतम्' सत्य की ही जीत होती है, झूठ की नहीं। इस आदर्श वाक्य को जीवन में उतारकर यथार्थ चिन्तन करना एवं यथार्थ भाषण करना, दैनिक चर्या, व्यवसाय व व्यवहार में सत्य का प्रयोग करना कठिन अवश्य है, लेकिन सम्भव है । सत्याणुव्रती को अभय और निष्पक्ष रहना चाहिये और असत्य के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिये। ३. अचौर्य-अचौर्य अणुव्रत का पालन करने वाले को दूसरों की वस्तु को चोरवृत्ति से नहीं लेना चाहिये । कठोर अचौर्य व्रत का पालन नहीं कर सकने वाले को कम से कम व्यवसाय व व्यवहार में प्रामाणिक रहकर एवं सार्वजनिक सम्पत्ति का अनावश्यक दुरुपयोग तो नहीं करना चाहिये। ४. ब्रह्मचर्य-ब्रह्मचारी नीरोग बना रहता है। सामान्य व्यक्ति पूर्ण ब्रह्मचर्य की साधना नहीं कर सकता, अत: पुरुष पर-स्त्रीगमन एवं स्त्रियाँ परपुरुष के साथ मैथुन का तो परित्याग कर ही सकती हैं। इसी प्रकार पवित्रता का अभ्यास, खाद्य-संयम, स्पर्श-संयम एवं चक्षु-संयम भी ब्रह्मचर्य की ओर बढ़ने के संकेत हैं। ५. असंग्रह-प्रत्येक अणुव्रती का यह कर्तव्य है कि वह धन को आवश्यकता-पूर्ति का साधन माने। धन जीवन का लक्ष्य नहीं है। अनावश्यक सम्पत्ति का संग्रह करना समाज का शोषण एवं घोर अपराध है । अधिक नहीं तो कम से कम दैनिक उपभोग की वस्तुओं के अपव्यय से तो बचना ही चाहिये। वैचारिक पक्ष-व्रत एक आत्मिक अनुशासन होता है। वह ऊपर से थोपा हुआ नहीं है, अपितु अतर से स्वीकार किया हुआ होता है। अन्य का शासन परतन्त्रता का सूचक होता है। _व्रत से आत्म-शक्ति का संवर्धन होता है। दोषों के निराकरण का यह एक अचूक उपाय है। अणुव्रत आन्दोलन की पृष्ठभूमि व्रत ही है। . Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 666 ३१४ DIDISI कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड अणुव्रत आन्दोलन का एक ध्येय है-नैतिक मूल्यों का पुनरुत्थान । कार्य-पद्धति में देश-काल के अनुसार नवनव उन्मेष होते रहे। हिमालय की उपत्यकाओं से आने वाला निर्जर क्षेत्री अपेक्षाओं के अनुसार अनेक धाराओं में बहने लगा। अभियान को चरितार्थ करने में वैतिक चेतना ही पर्याप्त नहीं थी इसलिए वर्गीय कार्यक्रमों का आविर्भाव हुआ और वर्गीय नियमों का निर्मान हुआ इस आधार पर व्यापारियों विद्यार्थियों कर्मचारियों, महिलाओं आदि में व्यापक सुधार हुआ । अणुव्रत सब के लिए १. मैं चलने-फिरने वाले निरपराध प्राणी का संकल्पपूर्वक वध नहीं करूँगा । २. मैं न तो आक्रमण करूँगा और न आक्रामक नीति का समर्थन करूँगा । ३. मैं हिंसात्मक उपद्रवों एवं तोड़-फोड़मूलक प्रवृत्तियों में भाग नहीं लूंगा । ४. मैं मानवीय एकता में विश्वास रखूंगा (क) मैं जाति, वर्ण आदि के आधार पर किसी को अस्पृश्य या नीच नहीं मानूंगा । ( ख ) मैं सम्पत्ति, सत्ता आदि के आधार पर किसी को हीन या उच्च नहीं मानूंगा । ५. में सभी धर्म-सम्प्रदायों के प्रति सहिष्णुता रखूंगा। ६. मैं व्यवसाय व व्यवहार में सत्य की साधना करूँगा । ७. मैं चोर-वृत्ति से किसी की वस्तु नहीं लूंगा । 5. मैं स्वदार ( या स्वपति) सन्तोषी रहूँगा । C. मैं रुपये व अन्य प्रलोभन से मत ( वोट) न लूंगा और न दूंगा । १०. मैं सामाजिक कुरूढ़ियों को प्रश्रय नहीं दूंगा । ११. मैं मादक व नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा । अणुव्रत : व्यापारियों के लिए १. मैं झूठा तौल माग नहीं करूंगा। २. मैं किसी चीज में मिलावट नहीं करूंगा । २. मैं चोरबाजारी तस्करी आदि) नहीं करूंगा। ४. मैं राज्य निषिद्ध वस्तु का व्यापार नहीं करूंगा । ५. मैं एक प्रकार की वस्तु दिखाकर दूसरे प्रकार की वस्तु नहीं दूंगा । अणुव्रत कर्मचारियों के लिए : १. मैं रिश्वत नहीं लूंगा । २. में प्राप्त अधिकारों से किसी के साथ अन्याय नहीं करूंगा । ३. मैं जनता और सरकार को धोखा नहीं दूंगा । अणुव्रत विद्यार्थियों के लिए १. मैं परीक्षा में अवैधानिक उपायों से उत्तीर्ण होने का प्रयत्न नहीं करूँगा। २. मैं तोड़-फोड़मूलक हिंसात्मक प्रवृत्तियों में भाग नहीं लूंगा । ३. मैं विवाह प्रसंग में रुपये आदि लेने का ठहराव नहीं करूँगा । ४. मैं धूम्रपान व मद्यपान नहीं करूँगा । ५. मैं बिना टिकट रेल यात्रा नहीं करूंगा । . Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. मैं मृतक के पीछे प्रथा-रूप से नहीं रोऊँगी । ७. मैं बच्चों के लिए गाली या अभद्र शब्दों का प्रयोग नहीं करूँगी | अणुव्रत अणुव्रत महिलाओं के लिए १. मैं दहेज का प्रदर्शन नहीं करूँगी और न किसी के यहां दहेज देखने जाऊँगी। २. मैं अपने लड़के-लड़कियों की शादी में रुपये आदि लेने का ठहराव नहीं करूगी । ३. मैं आभूषण आदि के लिये पति को बाध्य नहीं करूँगी । ४. मैं सास-ससुर आदि के साथ कटु-व्यवहार होने पर क्षमा-याचना करूँगी । ५. मैं अश्लील व भई गीत नहीं गाऊंगी। अणुव्रत शिक्षकों के लिए १. मैं विद्यार्थी के बौद्धिक विकास के साथ उसके चरित्र विकास का ध्यान रखूंगा । और ४. मैं मादक व नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा । ५. मैं शिक्षा प्रसार के लिए प्रति सप्ताह एक घण्टा निःशुल्क सेवा दूंगा । अमिक अवत २. मैं अवैध उपायों से विद्यार्थियों के उत्तीर्ण होने में सहायक नहीं बनूंगा । ३. मैं अपने विद्यालय में दलगत राजनीति को स्थान नहीं दूंगा, और न इसके लिए विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करूंगा। ५. मैं मादक व नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा । ६. मैं सामाजिक कुरूड़ियों को प्रथम नहीं दूंगा। १. मैं अपने कार्य में प्रामाणिकता रखूँगा । २. मैं हिंसात्मक उपद्रवों एवं तोड़-फोड़मूलक प्रवृत्तियों का आश्रय नहीं लूंगा । ३. मैं मद्यपान व धूम्रपान नहीं करूँगा तथा नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा । ४. मैं जुआ नहीं खेलूंगा । ५. बालविवाह, बुद्ध-विवाह, मृत्युभोज आदि कुरीतियों को प्रथम नहीं दूंगा। अणुव्रत आन्दोलन कृषक अणुव्रत १. मैं पारिश्रमिक वितरण में अवैध उपायों को काम में नहीं लंघा । २. मैं अपने आश्रित पशुओं के साथ क्रूर व्यवहार नहीं करूंगा। ३. मैं समस्याओं के निदान के लिए हिंसात्मक तथा अवैधानिक उपायों को काम में नहीं लूंगा । ४. मैं विवाह व अन्य आयोजनों में अपव्यय नहीं करूँगा । १. मैं रुपये व अन्य प्रलोभन से मतदान नहीं करूँगा । २. मैं जाति-धर्म आदि के आधार पर मत नहीं दूंगा । साहित्यकारों व कलाकारों के लिये अणुव्रत १. मैं साहित्य व कला का सर्जन केवल व्यवसाय वृद्धि से नहीं अपितु सत्यं शिवं सुन्दरं की भावना से करूँगा । २. मैं अम्लील साहित्य व कला का सर्जन नहीं करूँगा । ३. मैं दलगत राजनीति एवं साम्प्रदायिक भावना से साहित्य व कला का सर्जन नहीं करूँगा । चुनाव आचार संहिता : मतदाता के लिए अणुव्रत ३१५ .0 . Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ oto on to a too ३१६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड ३. मैं अवैध मतदान नहीं करूँगा । ४. मैं चरित्र व गुणों के आधार पर अपने मत का निर्णय करूंगा ५. मैं किसी उम्मीदवार या दल के प्रति अश्लील प्रचार व निराधार आक्षेप नहीं करूँगा । ६. मैं किसी चुनाव सभा या अन्य कार्यक्रमों में अशांति या उपद्रव नहीं फैलाऊँगा । उम्मीदवार के लिए १. मैं रुपये व अन्य प्रलोभन तथा भय दिखाकर मत ग्रहण नहीं करूँगा । २. मैं जाति-धर्म आदि के आधार पर मत ग्रहण नहीं करूंगा । ३. मैं अवैध मत ग्रहण करने का प्रयास नहीं करूँगा । ४. में सेवा भाव से रहित केवल व्यवसाय बुद्धि से उम्मीदवार नहीं बनूंगा। ५. मैं अपने प्रतिपक्षी उम्मीदवार या दल के प्रति अश्लील प्रचार व निराधार आक्षेप नहीं करूँगा । ६. चुनाव सभा या अन्य कार्यक्रमों में अशांति व उपद्रव नहीं फैलाऊँगा । ७. मैं निर्वाचित होने पर बिना पुनः चुनाव के दल-परिवर्तन नहीं करूँगा । विधायक के लिए १. मैं विधान या कानून के निर्माण में निष्पक्ष रहूंगा। २. मैं किसी एक दल के टिकट से निर्वाचित होकर दिना पुनः चुनाव के दल परिवर्तन नहीं करूँगा । ३. मैं विरोध के नाते विरोध और पक्ष के नाते पक्ष नहीं करूँगा । ४. मैं सदन की शिष्टता का उल्लंघन नहीं करूँगा । मैं ५. राष्ट्र की भावात्मक एकता के विकास में प्रयत्नशील रहूँगा । अन्तर्राष्ट्रीय आचार-संहिता १. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण न करे । २. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की भूमि व सम्पत्ति पर अधिकार करने की चेष्टा न करे । ३. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की आन्तरिक व्यवस्था में हस्तक्षेप न करे ४. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ मतभेद की स्थिति में समन्वय की नीति अपनाये । ५. निःशस्त्रीकरण का प्रयास हो । ६. एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अपनी शासन पद्धति व विचारधारा को न थोपे । इस प्रकार अणुव्रत का यह विधान जीवन जीने की कला, नैतिक क्रांति का विचार वाहक, सही सामाजिक मूल्यों का प्रतिष्ठापक, मानव की भावनात्मक एकता का मार्गदर्शक एवं विश्व शांति के सुन्दर समाधान रूप में आपके समक्ष समुपस्थित है । युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आन्दोलन किसी एक समाज और वर्ग का नहीं, वह समस्त मानव समाज के हित के लिए है। देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि विभिन्न प्रकार के वर्ग हैं। सबके उपासना के प्रकार और उपास्य के नामों में भिन्नता है। उनके उद्देश्य भी भिन्न हो सकते हैं, किन्तु युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के प्रवचनों का सार यह है कि उपासना के प्रकार और भाषा में भिन्नता होते हुए भी व्यक्ति अपने धर्म को नहीं छोड़े । वह धर्म है - सत्य और अहिंसा । इस तथ्य में किसी का विरोध नहीं हो सकता । मन्दिर में जाकर भगवान की पूजा कर लेना तथा बड़े-बड़े तीर्थों की यात्रा कर लेना तो किन्तु धर्म को जीवन-व्यवहार में स्थान देना बहुत कठिन है । व्यवहार में धर्म उतारे बिना यह अपने आसान है, उपास्य के . Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुव्रत और अणुव्रत आन्दोलन ३१७ . ........................................................................... प्रति धोखा होगा। पूजा नहीं करने वाले का तो सम्भव है किसी प्रकार उद्धार भी हो जाये किन्तु प्रात्म-प्रवंचक और कर्म-प्रवंचक का कभी उद्धार नहीं हो सकता। यदि मानव समाज को जीवित रखना है तो अणुव्रत के आदर्शों को अपनाना होगा। हमें युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी की आवाज को शक्ति देनी है, उनके हाथों को मजबूत करना है। यद्यपि आचार्य श्री तुलसी स्वयं समर्थ है किन्तु सर्व-साधारण का समर्थन मिलने से उनके अभियान में और गतिशीलता आयेगी। एक युग था, जब नैतिक मूल्यों की कोई चर्चा नहीं होती थी। यह बात नहीं है कि उस समय मनुष्य के मन में दुर्बलताएँ नहीं थीं, बुराइयां नहीं थीं। पर उसका स्वरूप भिन्न था और बुराई के प्रतिकार का क्रम भी दूसरा था। धीरे-धीरे मनुष्यों के मन-विचार और प्रवृत्तियों में जो परिवर्तन हुए, उन्होंने नैतिक आन्दोलन की अपरिहार्यता अनुभव करा दी । अणुव्रत आन्दोलन भी उसी शृंखला की एक सशक्त कड़ी है। मनुष्य के मन की धरती पर विचारों की पौध उगती है । उस पौध में कहीं फूल खिले होते हैं, कहीं कांटे बिछे होते हैं । कभी वह पतझर की भाँति वीरान हो जाती है और कभी मधुमास की बहारों से भर जाती है। उसके किसी भाग में अन्धकार भरा है तो दूसरा उजालों से खिला हुआ है। मन की इस धरती पर केवल आरोह-अवरोह ही नहीं, द्वन्द्वों का जाल भी है । उस द्वन्द्वात्मक जाल को काटकर आगे बढ़ने के लिए नैतिक बल की अपेक्षा रहती है। जिस व्यक्ति के पास नैतिकता का पाथेय नहीं है, वह अपनी जीवन-यात्रा में श्रान्त और क्लांत हो जाता है। किसी भी क्षेत्र में गति करने के लिए नैतिक बल की नितान्त अपेक्षा रहती है। धर्म और अध्यात्म की फलश्रुति तो नैतिकता ही है, समाज और राजतन्त्र भी नैतिकता के प्रभाव से मुक्त रहकर अपनी नीति में सफल नहीं हो सकते।। स्वयं अणुव्रत आन्दोलन के जनक युग-प्रधान आचार्य श्री तुलसी के शब्दों में, “आज बुद्धिवाद और वैज्ञानिक सुविधाएँ जिस रूप में बढ़ रही हैं, युग-चेतना में सत्ता सम्पदा और आत्मख्यापन की भूख भी तीव्र होती जा रही है । इस भूख ने मनुष्य को इतना असहाय और किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया है कि वह इसकी पूर्ति के लिए उचितानुचित कुछ भी करने में झिझकता नहीं। इस स्थिति को नियन्त्रित करने के लिए वैयक्तिक और सामूहिक, दोनों स्तरों पर प्रयत्न करने की अपेक्षा है । अणुव्रत आन्दोलन का उद्देश्य दोनों ओर से काम करने का रहा है। भारत में अपनी श्रेणी का यह पहला आन्दोलन है जिसने व्यक्ति चेतना और समूह-चेतना को समान रूप से प्रभावित किया है।" असाम्प्रदायिक आन्दोलन इस आन्दोलन का दृष्टिकोण प्रारम्भ से ही असाम्प्रदायिक रहा है। सब धर्मों की समान भूमिका पर रहकर कार्य करते रहना हो इसने अपना श्रेय मार्ग चुना है। असम्प्रदाय भावना से अणुव्रत-आन्दोलन को सबके साथ मिलकर तथा सबका सहयोग लेकर सामूहिक रूप से कार्य करने का सामर्थ प्रदान किया है। प्रथम अधिवेशन का आकर्षण अणुव्रत आन्दोलन का प्रथम वार्षिक अधिवेशन भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ। पहले-पहल शिक्षित वर्ग ने उनकी बातों को उपेक्षा व उपहास की दृष्टि से देखा, पर आचार्य श्री की आवाज जनता की आवाज थी, उसकी उपेक्षा की नहीं जा सकती थी। उनकी बातों ने धीरे-धीरे जनता के मन को छुआ और आन्दोलन के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा । अनैतिक वातावरण में मनुष्य जहाँ स्वार्थ को ही प्रमुख मानकर चलता है, परमार्थ को भूलकर भी याद नहीं करता, वहाँ कुछ व्यक्तियों का अणुव्रती बनना एक नया उन्मेष था। पत्रों की प्रतिक्रिया पत्रकारों पर उस घटना का बहुत अनुकूल प्रभाव हुआ। देश के प्रायः सभी दैनिक पत्रों ने बड़े-बड़े शीर्षकों से उन समाचारों को प्रकाशित किया। अनेक पत्रों में एतद्विषयक सम्पादकीय लेख भी लिखे गये। हिन्दुस्तान Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड ......................................................................... टाइम्स (नई दिल्ली), हिन्दुस्तान स्टेण्डर्ड (कलकत्ता), आनन्द बाजार पत्रिका, हरिजन सेवक, टाइम (न्यूयार्क) आदि पत्रों में प्रशंसात्मक निबन्ध प्रकाशित हुए। पत्रों में होने वाली उस प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है कि मानो ऐसे किसी आन्दोलन के लिए मानव-समाज भूखा और प्यासा बैठा था / प्रथम अधिवेशन पर उसका वह स्वागत आशातीत और कल्पनातीत था। आन्दोलन का लक्ष्य पवित्र है, कार्य निष्काम है, अतः उससे हर एक व्यक्ति की सहमति ही हो सकती है। जब देश के नागरिकों की संकल्प शक्ति जागरित होती है, तब मन में मधुर आशा का एक अंकुर प्रस्फुटित होता है / भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन, भूतपूर्व प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू, यूनेस्को के भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ० लूथर इवान्स, सुप्रसिद्ध विचारक काका कालेलकर, श्री राजगोपालाचारी, जे०बी० कृपलानी, हिन्दी जगत् के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र कुमार, श्रीमन्नारायण, श्रीमती सुचेता कृपलानी आदि कई नेताओं एवं विचारकों ने अणुव्रत आन्दोलन की मुक्तकण्ठ से सराहना की। आन्दोलन का मुख्य बल जनता है। उसी के आधार पर इसकी प्रगति निर्भर है। यों सभी दलों तथा सरकारों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ है। सबकी शुभकामनाएँ तथा सहानुभूति उसने चाही हैं और वे उसे हर क्षेत्र से पर्याप्त मात्रा में मिलती रही हैं। जन-मानस की सहानुभूति ही उसकी आवाज को गांवों से लेकर शहरों तक तथा किसान से लेकर राष्ट्रपति तक पहुँचाने में सहायक हुई है। आन्दोलन ने न कभी राज्याश्रय प्राप्त करने की कामना की है और न उसे इसकी जरूरत ही है। फिर भी राज्य सभा, लोकसभा, कई विधान सभाओं व विधान परिषदों में अणुव्रत-आन्दोलन विषयक प्रश्नोत्तर चले एवं प्रशंसा प्रस्ताव पारित हुए। विचार प्रसार के लिए साहित्य द्वारा जीवन-परिशोध की प्रेरणाएँ दी गईं। समय-समय पर विचार-परिषदों, गोष्ठियों, प्रवचनों तथा सार्वजनिक भाषणों का क्रम प्रचलित किया गया। परीक्षाओं का आयोजन प्रारम्भ किया गया। अणुव्रत विद्यार्थी-परिषदों की स्थापना की गई। केन्द्रीय अणुव्रत समिति की स्थापना भी आन्दोलन के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। समिति द्वारा प्रचुर साहित्य का प्रकाशन किया गया और अणुव्रत नामक पाक्षिक पत्र का प्रकाशन निरन्तर कर रही है। नैतिक विचार क्रान्ति की आधारशिला लिए अणुव्रत का स्वर आन्दोलन के रूप में निखरा और आज यह अहिंसक समाज-व्यवस्था के अनुरूप सामाजिक एवं वैयक्तिक आदर्शों का प्रतीक बन गया है। अणुव्रत आज एक ऐसी आचार संहिता है जो राष्ट्रनायकों, साहित्यकारों एवं विचारकों की दृष्टि में जन-जन के लिए व्यवहार्य है। स्वस्थ समाज-निर्माण की यह आधारभूत चरित्र-रेखा है। इस प्रकार अणुव्रत आन्दोलन आज के भारत के पतनोन्मुख समाज का एकमात्र उद्धारक एवं पथ-प्रदर्शक है। इसमें राष्ट्रीय जीवन को एक नूतन स्वास्थ्यकर और ऊर्ध्वगामी दिशा में अग्रसर करने की प्रबल शक्ति है। हम आशान्वित हैं कि यह आन्दोलन और अधिक विकसित होगा तथा जन-जन के लिए भाग्य बनेगा, अस्तु /