Book Title: Anusandhan 2002 03 SrNo 19
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 6
________________ कवि ऋषभदास कृत व्रतविचाररास सं. विजयशीलचन्द्रसूरि 'कवि ऋषभदास'ए मध्यकालीन जैन कविओमां प्रतिष्ठित श्रेष्ठ गृहस्थ कविनुं नाम छे. तेमणे पोते ज निर्देश्युं छे ते प्रमाणे, चोंत्रीस रास अने ५८ स्तवननी रचना करी छे. (हीरविजयसूरि रास, अंतिम ढाल - कडी ३२, जै. गू. क. ३, पृ. ६८). १६ - १७मा शतकमां थई गयेला आ कविनी केटलीक कृतिओ ज प्रगट छे; मोटा भागनी तो अद्यावधि अप्रगट ज रही छे. केटलीक रचनाओनी तो हस्तप्रतिओ पण अप्राप्य छे (गु.सा.कोश, पृ. ३७). कविनी प्राप्य परंतु अप्रगट एक दीर्घ रास- कृति "व्रतविचार रास" नुं संपादन यथामति अत्रे प्रगट करवामां आवे छे. कविनी स्वहस्त लिखित प्रति उपरथी ज आ वाचना तैयार करवामां आवी छे, छतां पण, क्यांक क्यांक पानां फाटी गयेल होई तथा एकाद बे स्थळे अक्षरो पर बीजां पानांना अंश चोंटी गयेला होई, तेमज आ रासनी बीजी प्रति प्राप्त करवानुं अशक्यप्राय होईने केटलेक स्थाने जराजरा पाठ त्रुटित रही गयो छे. ८१ ढाळो अने ८६३ कडीओमां पथरायेला आ रासनो स्थूल परिचय आ प्रमाणे छे : दुहा : १४४ कवित: ४ चौपाई : २७२ समस्यागीत : २ प्रस्तुत कृतिनो विषय जैन श्रावक-श्राविकाए पालन करवा लायक १२ व्रतोनुं स्वरूपदर्शन छे. सम्यक्त्व अने १२ व्रतो ते जं श्रावक - धर्म, अने प्रत्येक जैनधर्मी गृहस्थे आ श्रावकधर्मनुं ग्रहण अने आचरण करवुं ज जोईए एवो बोध आपवानो कर्तानो प्रधान आशय छे. रासनो आंतरिक अछडतो परिचय मेळववा माटे आपणे ढाळ- क्रमे अवलोकन करीए. Jain Education International कड़ी : ४४३ श्लोक : १ रासनो प्रारंभ मंगलाचरणना दूहाथी थाय छे. इष्टदेव श्रीपार्श्वनाथने तथा पांच परमेष्ठीने स्मर्या पछी कवि सरस्वती देवीनुं स्तवन अने वर्णन लंबाणथी करे छे. पांचथी अग्यार एम ७ दूहा अने पछी बे आखी ढाळ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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