Book Title: Antkruddashanga Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 9
________________ ॥ श्रीः ॥ अंतगडसूत्र (अन्तकृतसूत्र) की ... प्रस्तावना इस वर्तमान चतुर्विंशति शासन में ऐसे ऐसे महापुरुष अनेकानेक हुए कि, जिन्होंने जीवनको आदर्श बनाकर अपने आपको विश्व में धन्य वना गए । उन महापुरुषोंने जीवनको धन्य बनाने के लिए उचित से उचित "ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः" को ही पसंद किया। कहा है हयं नाणं कियाहीणं हया अण्णाओ किया । पासंतो पंगुलो दड्ढो धावमाणो य अंधओ ॥१॥ छाया-हतं ज्ञानं क्रियाही हता अज्ञानतः क्रिया । पश्यन् पङ्गुर्दग्धः धावमानश्च अन्धकः ॥ १॥ - उन्होंने शास्त्रोक्त प्रकारसे ज्ञानक्रियाराधन द्वारा मोक्ष प्राप्त करने में चतुर्गतिक दुःखका अन्त देखा, इस प्रकार मुक्तदशा को प्राप्त करने के लिये 'ज्ञानक्रिया' उभय को जीवन सफलताका आधार समझकर स्वलक्ष्य सिद्धि के लिये तप संयममय जीवन जीने को इस क्षणभंगुर अनित्य संसार का त्याग करके वे विशुद्ध संयमी बने । संयमी होने के बाद अपनी आत्मा को कर्म शत्रु के घेराव में से मुक्त करने के हेतु उन महारथियोंने क्षमा तप आदि साज से सज्जित हो कर्मों पर विजय प्राप्त करने के लिये साहसिक वनकर आगे से आगे इतने बढे कि बेचारे कम हैरान होकर भाग खडे हुए । कौं पर विजय प्राप्त करने में उन वीर पुरुषों की दौड . इतनी आगे रही कि जिससे सारा संसार पीछे रह गया और वे अपने .. इष्ट स्थान मोक्ष क्षेत्र में पहुंचकर अनादिकाल की जन्म जरा मरण की व्याधि - का अन्त कर दिया। ......... . . . .

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