Book Title: Antkruddasha Sutra ka Samikshatmak Adhyayan Author(s): Manmal Kudal Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 5
________________ | अन्तकृतदशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन ...... . 203] योजना द्वारा अवशिष्ट पाठ को व्यक्त करने की प्राचीन शैली अपनाई है। इस सूत्र में अनेक स्थानों पर तप का वर्णन प्राप्त होता है, इसके अष्टम वर्ग में विशेष रूप से तप के स्वरूप एवं पद्धतियों का विवेचन किया गया है, जिनके अनेकविध स्थापनायन्त्र प्राप्त होते हैं। विषयवस्तु अन्तकृद्दशांग सूत्र में उन स्त्री-पुरुषों के आख्यान हैं, जिन्होंने अपने कर्मों का अन्त करके मोक्ष प्राप्त किया है। इसमें ९०० श्लोक(प्रमाण), ८ वर्ग और ९ अध्ययन हैं। ये आठ वर्ग क्रमश: १०,८,१३,१०,१०,१६,१३ और १० अध्ययनों में विभक्त हैं। प्रत्येक अध्ययन में किसी न किसी व्यक्ति का नाम अवश्य आता है, किन्तु कथानक अपूर्ण है। अधिकांश वर्णनों को अन्य स्थान से पूर्ण कर लेने की सूचना कर दी गई है। 'वण्णओ' की परम्परा द्वारा कथानकों को अन्यत्र से पूरा कर लेने को कहा गया है। प्रथम अध्ययन में गौतम का कथानक द्वारवती नगरी के राजा अन्धकवृष्णि की रानी धारिणी देवी की सुप्तावस्था तक वर्णन कर कह दिया गया है और बताया गया है कि स्वप्नदर्शन, कुमारजन्म, उसका बालकपन, विद्याग्रहण, यौवन, पाणिग्रहण, विवाह, प्रसाद एवं भोगों का वर्णन महाबल की कथा के समान चित्रित है। आगे वाले प्राय: सभी अध्ययनों में नायक-नायिका मात्र का नाम निर्देश कर वर्णन अन्यत्र से अवगत कर लेने की सूचना दी गई है। इस आगम के आख्यानों को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम पाँच वर्गों के कथानकों का संबंध अरिष्टनेमि के साथ है और शेष तीन वर्ग के कथानकों का संबंध भ. महावीर तथा श्रेणिक के साथ है। इस आगम में मूलत: दस अध्ययन रहे होंगे, उत्तरकाल में इसको विकसित कर यह रूप हुआ है।" प्रथम वर्ग से लेकर पाँचवें वर्ग में श्रीकृष्ण वासुदेव का वर्णन आया है] मधुकरमुनि द्वारा संपादित अन्तकृद्दशा सूत्र की भूमिका में श्रीकृष्ण वासुदेव की प्रामाणिकता के बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है उनके अनुसार श्रीकृष्ण वासुदेव जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा में अत्यधिक चर्चित रहे हैं। वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में वासुदेव, विष्णु, नारायण, गोविन्द प्रभृति उनके अनेक नाम प्रचलित हैं। श्रीकृष्ण, वसुदेव के पुत्र थे, इसलिए वे वासुदेव कहलाये। महाभारत शान्तिपर्व में कृष्ण को विष्णु का रूप बताया है। गीता में श्रीकृष्ण, विष्णु के अवतार हैं। महाभारतकार ने उन्हें नारायण मानकर स्तुति की है। वहाँ उनके दिव्य और भव्य मानवीय स्वरूप के दर्शन होते हैं। शतपथब्राह्मण में उनके नारायण नाम का उल्लेख हआ है। तैतरीयारण्यक में उन्हें सर्वगुणसम्पन्न कहा है। महाभारत के नारायणीय उपाख्यान में नारायण को सर्वेश्वर का रूप दिया है। मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को यह बताया है कि जनार्दन हो स्वयं नारायण हैं। महाभारत में अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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