Book Title: Antkruddasha Sutra ka Samikshatmak Adhyayan Author(s): Manmal Kudal Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 9
________________ | अन्तकृतदशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन 207 श्रा। आंगिरस ऋषि ने श्रीकृष्ण से कह- श्रीकृष्ण जब मानव का अन्त समय सन्निकट आये उस समय उसको तीन बातों का स्मरण करना चाहिये। १. त्वं अक्षतमसि-तू अविनश्वर है। २. त्वं अच्युतमसि तू अच्युत है। ३. त्वं प्राणसंशितमसि-तु प्राणियों का जीवनदाता है। प्रस्तुत उपदेश को श्रवणकर श्रीकृष्ण अपिपास हो गये। वे अपने आपको धन्य अनुभव करने लगे। प्रस्तुत कथन की तुलना अन्तकदशा में आये हुए भगवान अरिष्टनेमि के इस कथन से कर सकते हैं कि जब भगवान के मुँह से द्वारिका का विनाश और जराकुमार के हाथ से स्वयं अपनी मृत्यु की बात सुनकर श्रीकृष्ण का मुखकमल मुरझा जाता है, तब भगवान कहते हैं- हे श्रीकृष्ण ! तुम चिन्ता न करो। आगामी भव में तुम अमम नामक तीर्थकर बनोगे।" यह सुनकर श्रीकृष्ण संतुष्ट एवं खेदरहित हो गये। प्रस्तुत आगम में श्रीकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमार का प्रसंग अत्यन्त प्रेरणास्पद एवं रोचक है। वे भगवान् अरिष्टनेमि के उपदेश से इतने प्रभावित हुए कि सब कुछ छोड़कर श्रमण बन जाते हैं और महाकाल नामक श्मशान में जाकर भिक्षु महाप्रतिमा को स्वीकार कर ध्यान में लीन हो जाते हैं। इधर सोमिल नामक ब्राह्मण देखता है कि मेरा होने वाला जामाता श्रमण बन गया है तो उसे अत्यन्त क्रोध आता है और सोचता है कि इसने मेरी बेटी के जीवन से खिलवाड़ किया है, क्रोध से उसका विवेक क्षीण हो जाता है। उसने गजसुकुमार मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर धधकते अंगार रख दिये। उनके मस्तक, चमड़ी, मज्जा, मांस आदि के जलने से महाभयंकर वेदना होती है फिर भी वे ध्यान से विचलित नहीं होते हैं। उनके मन में जरा भी विरोध एवं प्रतिशोध की भावना पैदा नहीं हई। यह थी रोष पर तोष की विजय। दानवता पर मानवता की विजय, जिसके फलस्वरूप उन्होंने केवल एक ही दिन में अपनी चारित्र पर्याय के द्वारा मोक्ष को प्राप्त किया। चतुर्थ वर्ग के दस अध्ययनों में उन दस राजकुमारों का वर्णन हैं जिन्होंने राज्य के सम्पूर्ण वैभव व ठाट-बाट को छोड़कर भगवान अरिष्टनेमि के पास उग्र तपश्चर्या कर केवलज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। इस वर्ग में निम्न दस राजकुमारों का वर्णन हैनाम पिता माता १. जालि कुमार म. वसुदेव रानी धारिणी २. मयालि कुमार म. वसुदेव रानी धारिणी ३. उवयालि कुमार म. वसुदेव रागी धारिणी ४. पुरु षसेन कुमार म. वसुदेव रानी धारिणी ५५ वारिषेण कुमार म. वासुदेव रानी धारिणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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