Book Title: Angsuttani Part 01 - Ayaro Suyagao Thanam Samavao
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1080
________________ एवं देवंधगारे देवज्जोते देवसण्णिवाते देवक्कलिता देवकहकहते एवं देवाणं भाणियव्वं एवं देवलिया देवकहकहए एवं दोग्गतिगामिणीओ सोगतिगामिणीओ संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ अमणुण्णाओ माओ अविद्धाओ विसुद्धाओ अपसत्थाओ सत्थाओ सीतलुक्खाओ णिगुहाओ एवं पडिसति विद्धसंति एवं परिणते जाव परक्कमे एवं परिग्गहिया वि एवं पासे वि एवं पुट्ठियावि एवं पुव्वफग्गुणी उत्तराफग्गुणी एवं रित्ताणं एवं फुडित्ताणं एवं संवट्ट इत्ताणं एवं णिवट्टतित्ताणं एवं बलसंपणेण य रूवसंपणेण य बलसंपणेण य जयसंपण्णेण य सव्वत्थ पुरिसजाया पडिवक्खो एवं बलेण य सुतेण य एवं बलेण य सीलेण य एवं बलेण य चरितेण य एवं मणुस्सावि एवं मोहे मूढा एवं मोहे मूढा एवं रज्जति मुच्छंति गिज्भंति अज्झोववज्जंति एवं रुवाई गंधाई रसाइ फासाई एक्केक छ छ आलावगा भाणियव्वा एवं रुवाइ पास गंधाइ अग्घाति रसाइ आसादेति फासाइ पडिसंवेदेति एवं रुवेण य सीलेण य एवं रुवेण य चरितेण य एवं वइकमाणं अतिचाराणं अणायाराणं एवं वंदति णाममेगे णो वंदावेइ Jain Education International · २५ ४।४३७-४४१ २।१५४ ३७७,७८ ३।५१७,५१८ २।२२४, २२५ ५।३६-४४ २।१६ ३।५३३ २।२२ २/४४५, ४४६ २।३६६-४०२ ४/४७७,४७८ ४१४०२-४०४ ३।६५,६६ २४२२,४२३ ३।१७८, १७६ ५।७-१० ३।२१-३१४ २२०२-२०५ ४१४०६,४०७ ३।४४५-४४७ ४।११२ For Private & Personal Use Only _४।४३५, ४३६ २।१५३ ३।७६ ३।५१५, ५१६ २/२२३ ४।३-११ २।१५ ३।५३२ २।२१ २।४४३ २३६८ ४/४७२,४७३ ४४० १ ३।६३,६५ २४०१ ३।१७६ ५।६ ३।२८५ - २६० २।२०२-२०५ २/२०१ ४/४०५ ३।४४४ ४१११ www.jainelibrary.org


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