Book Title: Anekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 4
________________ देखा মল।। 6992 २४. फिल. अध्यात्म-पद सब जग स्वारथ को चाहत है, स्वारथ तोहि भायो । जीव ! तैं मूढ़पना कित पायो ? अशुचि, अचेत, दुष्ट तन परम अतिन्द्री निज सुख माहीं, कहा जान विरमायो । हरकै, विषय रोग लिपटायो । । जीव ! तैं मूढपना कित पायो ? चेतन नाम भयो जड़ काहे, अपनो नाम गँवायो । तीन लोक को राज छांडिकै, भीख मांग न लजायो । । जीव! तैं मूढपना कित पायो ? मूढ़पना मिथ्या जब छूटै, तब तू संत कहायो । 'द्यानत' सुख अनन्त शिव बिलसो, यो सतगुरु बतायो 11 जीव ! तैं मूढ़पना कित पायो ? - कविवर द्यानतराय

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