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अनेकान्त-58/1-2
की विदेहगमनविषयक घटना ही शास्त्रसम्मत न होने से अविश्वसनीय है तो उस पर आधारित गृद्धपिच्छ नामकरण की घटना को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि दिगम्वरत्व के विरोधियों द्वारा दिगम्बर परम्परा के शास्त्रों को अतथ्यपरक सिद्ध करने, अपने को कुन्दकुन्दाचार्य से भी पूर्व का सिद्ध करने तथा दिगम्बर मुनि के आचार को दूपित करने के लिए किया गया पड्यन्त्र रहा है। दिगम्बरों को आगम विरुद्ध किंचित् भी स्वीकार नहीं करना चाहिए।
तस्स मुहग्गदवयणं, पुव्वावरदो सविरहियं सुद्ध। । आगमिदि परिकहियं, तेण दु कहिया हवंति तच्चत्था।।
- उन आप्त के मुख से निकले हुए जो । | पूर्वापर दोषों से रहित शुद्ध वचन है वह 'आगम' इस प्रकार | | कहे जाते हैं। उस कहे हुए आगम में तत्त्वार्थ होता है। ।
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