Book Title: Anekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12 Author(s): Jugalkishor Mukhtar Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 4
________________ ॐ अहम स्ततत्त्व-सपातक 000 स्वतत्त्व-प्रकाशक वार्षिक मूल्य ५) एक किरणका मूल्य ) ) नीतिविरोधकसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥ जनवरी वर्ष किरण १ वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा जि० सहारनपुर पौष, वीरनिर्वाण-संवत् २४७३, विक्रम संवत् २००४ - समन्तभद्र-भारतीके कुछ नमूने युक्त्यनुशासन अवाच्यमित्यत्र च वाच्यभावादवाच्यमेवेत्ययथाप्रतिज्ञम् । स्वरूपतश्चेत्पररूपवाचि स्वरूपवाचीति वचो विरुद्धम् ॥२६॥ ('अशेष तत्त्व सर्वथा श्रवाच्य है ऐसीएकान्त मान्यता होने पर) तत्त्व अवाच्य ही है ऐसा कहना अयथाप्रतिज्ञ-प्रतिज्ञाके विरुद्ध-होजाता है, क्योंकि 'अवाच्य' इस पदमें ही वाच्यका भाव है- वह किसी बातको बतलाता है, तब तत्त्व सर्वथा अवाच्य न रहा। यदि यह कहा जाय कि तत्त्व स्वरूपसे अवाच्य ही है तो 'सर्व वचन स्वरूपवाची है' यह कथन प्रतिज्ञाके विरुद्ध पड़ता है। और यदि यह कहा जाय कि पररूपसे तत्त्व अवाच्य ही है तो 'सर्ववचन पररूपवाची है। यह कथन प्रतिज्ञाके विरुद्ध ठहरता है।' [इस तरह तत्त्व न तो भावमात्र है, न अभावमात्र है, न उभयमात्र है, और न सर्वथा अवाच्य है, इन चारों मिथ्याप्रवादीका यहां तक निरसन किया गया है। इसी निरसनके सामर्थ्यसे सदवाच्यादि शेष मिथ्याप्रवादांका भी निरसन हो जाता है। अर्थात न्यायकी समानतासे यह फलित होता है किन तो सर्वथा सदवाच्य तत्त्व है, न असदवाच्य, न उभयाऽवाच्य और न अनुभयाऽवाच्य।]Page Navigation
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