Book Title: Anekant 1948 Book 09 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 24
________________ किरण १ स्व० मोहनलाल दलोचन्द देसाई ये कुछ चंद बातें हैं जिनसे न्याय के पढ़नेकी और लाभदायक विषय है जिसका अध्ययन लौकिक उपयोगिता और लाभोंपर कुछ प्रकाश पड़ सकता है। और पारमार्थिक दोनों दृष्टियोंसे आवश्यक हैअत: ज्ञात होता है कि न्याय एक बहुत उपयोगी उसकी अपेक्षा नहीं करनी चाहिये । -दरबारीलाल कोटिया -: जनसाहित्य महारथी :स्क० मोहनलाल दलीचन्द देसाई (ले-श्री भंवरलाल नाहटा ) शत्रजय, गिरनार आदि तीर्थोसे पवित्रित प्रीवियस पासकी। तदन्तर गोकुलदास तेजपाल सौराष्ट्र-काठियावाड़ देशने कई महान व्यक्तियोंको बोडिगमें रहकर सन् १९०६ में बी०ए० की परीक्षा जन्म दिया जिनमें से वतमान युगके तीन जैन पास की। तेजस्वी नक्षत्रों- जो आज विद्यमान नहीं हैं- बी०ए०पासकर इन्होंने माधवजी कामदार एण्ड का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अध्यात्म साधनाके छोटूभाई सोलीसिटर्सके यहां रु०३०) मासिकमें श्रेष्ठतम साधक श्रीमद् राजचन्द्र, जैन साहित्य नौकरी करली। वहां नौकरी करते हुए इन्होंने महारथी मोहनलाल दलीचन्द देसाई एवं लोक- एल० एल० बी० का अभ्यास चालू रखा और साढ़े साहित्य के महान लेखक मवेश्चन्द मेघाणी ये तीनों तीन वर्षमें अर्थात १६१० की जुलाइमें एल० एल० बी० इसी पवित्रभूमि के रत्न थे। इनमें जैनसाहित्यकी होगये। इसके बाद सेप्टेम्बर महीने में इन्होंने सेवा करने में श्रीयुत मोहनलाल दलीचन्द देसाईने वकालतकी सनद प्राप्त की उस समय आपको फीसके सतत प्रयत्न कर जो ठोसकृतियां जैन समाजको दी लिय सेठ हेमचन्द अमरच-दसे कर्जके तौरपर इसके लिये जैनसमाज आपका सर्वदा ऋणी रहेगा। रुपये लेने पड़े थे जो पीछे सुविधानुसार लौटा दिये हिन्दी पाठकोंकी जानकारी के लिये श्रीयत दमाईकी गये थे। सेवाका संक्षिप्त परिचय यहां दिया जारहा है। श्रीयुत देसाई वकील होकर अपना स्वतंत्र बीकानेर (काठियावाड) रियासतके लगासर व्यापार करनेलगे और सन १६११ में पहिला विवाह गांव में सन १८८y ई० के अप्रेल, मासमे इनका अभयचन्द कालीदायकी पुत्री मरिग बहनस हा जन्म हुआ था। ये दशा श्रीमाली जातिके जिससे लाभलक्ष्मी और नटवरलाल नामक दो श्वेताम्बर मृत्तिपूजक जन श्रीवलोचन्द देसाईके पुत्र सन्तान हुई। मणिबहनका देहान्त होजाने पर सन् थे। उनकी माताका नाम उजानबाई था। इनके १६२० के दिसम्बरमे प्रभावती बहिनके साथ आपका जीवननिर्माण में राजकोटनिवामी श्रीयत प्राणजीवन द्वितीय विवाह हुश्रा। जिससे रमणीकलाल और मरारजी साहका विशेष हाथ रहा है, जो इनके जयसुखलाल नामक पुत्र और ताराबहिन व रमाबहिन मामा होते थे। पिताकी स्थिति अत्यन्त साधारण नामको पुत्रियां उत्पन्न हुई। होने के कारण ५ वर्षको बाल्यावस्थामे ही प्राणजीवन अपने व अपने परिवारके आजीविका मामा इन्हें अपने यहां ले आये। पढ़ाईका समुचित -वकालत या कोईभी धन्धा प्रत्येक व्यक्ति करता है प्रबन्ध करदिया, जिससे मामाके पास रहकर इन्होंने परन्तु आदर्श व्यक्ति वही कहा जासकता है जो

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