Book Title: Anaupcharika Shiksha Sankalpana evam Swarup
Author(s): Shivcharan Manoriya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 5
________________ ३० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड (अ) ८ से १४ आयु वर्ग के कार्यरत अथवा विद्यालय से पढ़ाई छोड़ देने वाले बालकों की शिक्षा की व्यवस्था । इस वर्ग के (६० प्रतिशत अशिक्षित शिक्षार्थियों में सीखने की रुचि सक्रिय रहती है और एक हल्के से प्रयास द्वारा इन्हें निरक्षरों की श्रेणी में सम्मिलित होने से रोका जा सकता है। इस वर्ग के छात्रों को हिन्दी, गणित, वातावरण का ज्ञान एवं व्यवसाय सम्बन्धी विषयों का ज्ञान कराया जायगा जिससे वे अनौपचारिक शिक्षा पूर्ण करके औपचारिक शिक्षा में प्रवेश लेने में समर्थ हो सकें। इस कार्यक्रम में आवश्यकतानुसार टैस्ट या परीक्षा का प्रावधान भी रहना चाहिए जिससे अवसर मिलने पर शिक्षार्थी औपचारिक शिक्षा धारा में पुनः प्रविष्ट हो सकें । (ब) १५ - २५ आयु वर्ग के किशोर गृहस्थी बसाने लगते हैं और व्यावसायिक तथा पारिवारिक कार्यों का उत्तरदायित्व निभाने लगते हैं। इस वर्ग के शिक्षार्थियों को रचनात्मक प्रयोजनों की ओर अग्रसर किया जा सकता है। इस वर्ग में ५२ प्रतिशत लोग निरक्षर हैं। सामाजिक-आर्थिक विकास कार्यकमों के सुसम्पादन के लिए यह वर्ग निर्णायक महत्त्व का है। लक्ष्य ( स ) कृषकों तथा श्रमजीवियों के लिए शिक्षा कार्यक्रमों को पुनर्संगठित करना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इन्हीं के ऊपर देश की प्रगति का भार है । (द) धमिकोत्तर गृहणियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की जायगी। राष्ट्रीय अनुशासन के जीवन दर्शन के लिए अनौपचारिक शिक्षा का केन्द्रीय महत्व है । हमारे सामाजिकआर्थिक जीवन के अनेक पहलुओं में राष्ट्रीय अनुशासन की नितान्त आवश्यकता है । हमें ऐसे अनुशासन की आवश्यक है जो हमारी समाजिक-आर्थिक चेतना से उपजे हमें एक समुचित मूल्य व्यवस्था भी विकसित करनी है। ऐसी मूल्य व्यवस्था जिसमें बुनियादी स्वतन्त्रताओं के साथ-साथ कर्तव्य भावना की जागरूकता हो, बन्धुत्व हो, मानवीयता सद्व्यवहार और आर्थिक व सामाजिक समानता हो । अनौपचारिक शिक्षा + अनौपचारिक शिक्षा अपने शिक्षार्थी के सर्वागीण विकास का दावा कभी नहीं करती बल्कि वह उनके लिए शिक्षा के अवसर सुलभ कराने की संभावित चेष्टा करती है । अनौपचारिक शिक्षा भारत जैसे विकासशील देश में विकास की प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई होती है। फिलिप कुम्बस के शब्दों में 'उचित स्थानों पर समुचित तरीके से क्रियान्वित और अनुपूरक प्रयत्नों से सम्बन्धित अनौपचारिक कार्यक्रम ग्रामीण निर्धनता के निवारण के लिए शक्तिशाली साधन हो सकते हैं।' Jain Education International इसके मुख्य लक्ष्य निम्न हो सकते हैं--- (१) सक्रिय साक्षरता | (२) नागरिकों में ग्रामोद्योग के प्रति रुचि उत्पन्न करना ताकि वे अपने अतिरिक्त समय का समुचित प्रयोग कर सकें । (३) कृषि के उन्नत तरीकों एवं साधनों के संरक्षण से नागरिकों को परिचित कराना । (४) आदर्श नागरिक के गुणों का विकास करना । (५) सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए समर्थ बनाना । (६) अमिकोत्तर महिलाओं के लिए गिला (प्रसूति शिशुपालन, परिवार नियोजन आदि) । अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों से सर्वसामान्य मनुष्य लाभान्वित हो सकते हैं, अतः उन्हें (शिक्षार्थी को ) आयोजित कार्यक्रम के साथ समूहित करना पड़ता है या समूहों के अनुसार कार्यक्रम आयोजित करने पड़ते हैं । इसमें प्रवेश हेतु आयु वर्ग तथा औपचारिक शिक्षा में आवश्यक नियमों का कोई बन्धन नहीं होगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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