Book Title: Anaupcharika Shiksha Sankalpana evam Swarup Author(s): Shivcharan Manoriya Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 3
________________ २८ DIDISIS कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ तृतीय खण्ड व्यस्त दैनिक जीवनचर्या के कारण स्थान - समय सम्बन्धी सीमाओं में बँधने को तैयार है । कदाचित हम अपने प्रयासों से इन्हें औपचारिक शिक्षा की मुख्य धारा में लाने का प्रयत्न भी करें तो भी धनाभाव के कारण हम उनके लिए समुचित व्यवस्था नहीं कर सकेंगे । फलतः हमें किसी नवीन विधा का प्रयोग आवश्यक होगा । अनौपचारिक शिक्षा इसी आवश्यकता की पूर्ति कर सकती है। विकासमान भारत के नागरिकों को आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में हो रहे तीव्रतम परिवर्तनों से जूझने के लिए तैयार करना इस शिक्षा का महत्त्वपूर्ण कार्य होगा । स्वैच्छिक प्रयास +0+0+0 क्रियाशील साक्षरता को अपना प्रमुख लक्ष्य मानकर कतिपय स्वैच्छिक संस्थाएँ भी प्रौढ़ शिक्षा एवं अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रवृत्त हुईं, जिनमें कर्नाटक प्रौढ़ शिक्षा समिति, बम्बई महानगर समाज शिक्षा समिति, बगोल समाज सेवा संघ तथा राजस्थान की प्रौढ़ शिक्षा समिति, अजमेर, लोक शिक्षण संस्थान, जयपुर, प्रौढ शिक्षा समिति बीकानेर, सेवा मन्दिर, उदयपुर, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर तथा प्रौढ़ शिक्षा समिति आदि मुख्य हैं। इन संस्थाओं ने कृषकों के लिए अल्पकालीन प्रशिक्षण, श्रमिकों के लिए कल्याण कार्यक्रम, कार्यरत बालकों के लिये अनौपचारिक शिक्षा, महिलाओं के लिये घरेलू उद्योग एवं अनौपचारिक शिक्षा के अन्यान्य कार्यक्रम आरम्भ किये हैं । Jain Education International राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं अनौपचारिक शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा को औपचारिक शिक्षा का विकल्प नहीं माना जा सकता, दोनों एक दूसरे की पूरक हैं । उनमें मुख्य रूप से जो अन्तर है वह है उनके स्वरूप, संगठन और दृष्टिकोण में अन्तर अनौपचारिक शिक्षा का विशेष लक्षण यह है कि इसका स्वरूप और व्यवस्था शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं तथा सुविधाओं के अनुरूप ही होती है, फलतः इसमें स्वरूप या संगठन की एकरूपता, कठोरता और नियमबद्धता पर आग्रह नहीं होता । स्पष्ट है कि इससे अनौपचारिक शिक्षा में स्थान और परिस्थितियों के अनुसार विविधता आना स्वाभाविक है । एकरूपता और रूढ़ नियमबद्धता से मुक्त होने के कारण यह लचीलापन लिये हुए स्वायत्तशासी व्यवस्था है। १९६९ में पर्याप्त विचार विमर्श के पश्चात् अंशकालीन शिक्षा एवं पत्राचार पाठ्यक्रम की कोठारी कमीशन की राय स्वीकृत की गई। तदुपरान्त नवम्बर ७४ में विद्यालयेतर वालकों के लिये प्रस्ताव पारित किया गया और अनौपचारिक शिक्षा को स्वीकृति प्रदान की गई प्रान्तीय सरकारों ने केन्द्रीय प्रशासन के अनुरोध पर कतिपय जिलों का चयन करके वहाँ पर प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम आरम्भ किया। राजस्थान में यह कार्यक्रम ६ जिलों में आरम्भ किया गया तथा प्रत्येक जिले में १०० केन्द्र प्रारम्भ करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। 1 नवीन राष्ट्रीय नीति के अनुसार अनौपचारिक शिक्षा को प्रयोगात्मक मानने के बजाय शिक्षा का अन्तरंग हिस्सा माना गया है। इसके लिए ३ योजनाओं को पुष्ट माना गया है (अ) १५ वर्ष से कम वय वर्ग के बालकों की शिक्षा में सहायक होगी (शिक्षा में सार्वजनीनता के प्रयत्नों में सहायक ) (ब) १५ से २५ वर्ष के नवयुवकों (ग्रामीण व शहरी ) को राष्ट्रीय कार्यक्रम में सक्रिय भागीदार बनाने का साधन होगी । (स) कृषि प्रशिक्षण एवं क्रियाशील साक्षरता में सहयोग | अनौपचारिक शिक्षा की प्रासंगिकता यद्यपि कृषियोग्य भूमि की उपलब्धि चरम पर पहुँच गयी है तथापि प्रति हेक्टर भूमि पर आश्रित लोगों की संख्या बढ़ गई है। अतः विकास के साधनों के संरक्षण एवं संवृद्धि पर भी ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने हेतु शिक्षा के सुबद्ध कार्यक्रम आयोजित किये जाना उपयोगी सिद्ध हो सकता For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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