Book Title: Anaupcharika Shiksha Sankalpana evam Swarup
Author(s): Shivcharan Manoriya
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 4
________________ अनौपचारिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप २६ . है। खादी ग्रामोद्योग एवं दुग्ध उत्पादन जैसी योजनाओं द्वारा किसानों को प्रासंगिक अंशकालीन रोजगार का अवसर प्राप्त हो सकता है तथा भूमि पर पड़ने वाला जनसंख्या का दबाब कम हो सकता है । देश के सर्वांगीण विकास हेतु यदि अनौपचारिक शिक्षा को सुसंगठित करके प्रारम्भ किया जाय तो यह निर्धनता तथा बेरोरोजगारी का निदान प्रस्तुत कर सकने में समर्थ हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषियोग्य भूमि का पुनर्वितरण, कृषकों को कृषि की नवीन विधाओं से परिचित कराने हेतु प्रशिक्षण, कृषि साधनों की सुरक्षा एवं विकास, पशुपालन एवं ग्रामोद्योग के माध्यम से कृषकों के लिए व्यावसायिक विविधता उत्पन्न की जा सकती है। अनौपचारिक शिक्षा में पर्याप्त लचीलापन होगा जिससे कि वह निर्दिष्ट अंचल या समूह की आवश्यकताओं के प्रसंग से अपने कार्यक्रम को अनुकूलित करती रहेगी। संकल्पना एवं प्राथमिकताएँ मानव विकास के क्रम में, प्राचीनकाल में ही यद्यपि सीखने-सिखाने के लिए विद्यालय नहीं थे; मगर सीखने का मौखिक पाठ्यक्रम अवश्य था जो किसी क्षेत्रविशेष या जातिविशेष के लिये सर्वमान्य नहीं था। जलवायु, कार्य की प्रकृति, पर्यावरण तथा सामाजिक आवश्यकताओं के आधार पर इसका निर्धारण होता था। आज भी मानव को जीवन संघर्ष के लिए तैयार करने वाली शिक्षा विद्यालय व्यवस्था के बाहर ही होती है। बगैर किसी संगठित प्रयास या व्यवस्था के--अभिवृत्तियों के निर्माण, कुशलताएँ प्राप्त करने एवं जानकारी बढ़ाने की प्रक्रिया को हम सहज शिक्षा (इनफारमल एज्यूकेशन) कहते हैं। इसमें परिवार एवं समाज के बुजुर्गों के सचेत प्रयास भी शामिल होते हैं ताकि शिक्षार्थी पर्यावरण के साथ समंजन करते हुए विकसित हो सकें। फिलिप कुम्बस और मंजूर अहमद ने अनौपचारिक शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है कि अनौपचारिक शिक्षा परम्परित औपचारिक शिक्षा के ढांचे से बाहर स्वतन्त्र अथवा व्यापक कार्यक्रम के विशिष्ट अंग के रूप में, परिचालित एक व्यवस्थाबद्ध सुसंगठित शिक्षा कार्यक्रम है जिसे किन्हीं निर्दिष्ट शिक्षार्थियों के लिए निर्दिष्ट शैक्षिक प्रयोजनों से चलाया जाता है । अनौपचारिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिसके स्वरूप का निश्चय शिक्षार्थी की आवश्यकताओं एवं सुविधाओं के अनुरूप किया जाता है, जो किसी कारणवश शिक्षा से वंचित या काम-धन्धे में लगे लोगों के लिए भी शिक्षा के अवसर जुटाने का प्रयत्न करती है, जो ऐसा व्यावहारिक आधार प्रस्तुत करती है कि शिक्षा जीवन का सहज अंग बन जाए और समाज को सतत शिक्षा की ओर अग्रसर बना सके। किसी भी शिक्षा कार्यक्रम को अनौपचारिक कहलाने के लिए उसमें निम्न शर्ते होना परमावश्यक है (१) औपचारिक व्यवस्था से परे हो, जिसमें विद्यालय और कक्षा शिक्षण क्रमबद्ध और श्रेणीबद्ध व्यवस्था के बन्धन न हों। (२) सचेत भाव से विचारपूर्वक संगठित हो। (३) समान समूह के लिए आयोजित की गई हो। (४) समूह की आवश्यकताओं और व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। ऐसे बालकों या व्यक्तियों के लिए जो किन्हीं कारणों से औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके हैं या नहीं कर सकते, अनौपचारिक शिक्षा एक विकल्प का काम करती है। यदि वे अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करके फिर से औपचारिक शिक्षा में प्रवेश ले लें तो यह शिक्षा उनके लिए विकल्प के स्थान पर पूरक का ही कार्य करेगी। वर्तमान में जिस रूप में यह नई व्यवस्था आरम्भ की गई है, उस रूप में यह उन बालक-बालिकाओं की सहायता के लिए है जो कि आर्थिक या अन्य किसी कारण से पूर्णकालिक औपचारिक शिक्षा में प्रवेश नहीं कर सके हैं अथवा प्रवेश करके वापस छोड़ चुके हैं । इस प्रकार के शिक्षा केन्द्रों में अध्ययन करने वाले छात्रों की आयु वर्ग ८ से १४ का होगा। भारत में निर्धनता और निरक्षरता की समस्या बड़ी विकट है। इनके निराकरण को ध्यान में रखते हुए विकास अभियान में अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों को निम्न क्रम से प्राथमिकता देना निश्चित हुआ है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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