Book Title: Anangpavittha Suttani Padhamo Suyakhandho
Author(s): Ratanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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________________ ओववाइयसुत्तं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा अप्पेगइया पढम सत्तराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा जाव तच्चं सत्तराइंदियं भिक्खुपडिम पडिवण्णा अहोराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा एकराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं अहमियं भिक्खुपडिमं णवणवमियं भिक्खुपडिमं दसदसमियं 'भिक्खुपडिमं खुड्डियं मोयपडिमं पडिवण्णा महल्लियं मोयपडिमं पडिवण्णा जवमझं चंदपडिमं पडिवण्णा वइर(वज्ज)मझं चंदपडिमं पडिवण्णा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति // 14 // तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुल० बल० रूव० विणय० णाण० दंसण० चरित्त० लज्जा० लाघव० ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियइंदिया जियणिद्दा जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्यहाणा णिग्गहप्पहाणा णिच्छयप्पहाणा अजवप्पहाणा मद्दवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विजापहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा णयप्पहाणा णियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा चारुवण्णा लज्जातवस्सीजिइंदिया सोही अणियाणा अप्पुस्सुया अबहिलेसा अप्पडिलेस्सा सुसामण्णरया दंता (बहूणं आयरिया बहूणं उवज्झाया दीवो ताणं सरणं गई पइटा) इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरंति / तेसि णं भगवंताणं आयावायावि विदिता भवंति परवाया विदिता भवंति आयावायं जमइत्ता णलवणमिव मत्तमातंगा अच्छिद्दपसिणवागरणा रयणकरंडगसमाणा कुत्तियावणभूया. परवादियपमद्दणा दुवालसंगिणो समत्तगणिपिडगधरा सव्वक्खरसण्णिवाइणो 'सव्वभासाणुगामिणो अजिणा जिणसंकासा जिणा इव अवितहं वागरमाणा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति // 15 // तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिया उच्चार-पासवण-खेलसिंघाणजल्ल-पारिहावणियासमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा छिण्णग्गंथा छिण्णसोया णिरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया संख इव णिरंगणा जीवो विव अप्पडिहयगई जच्चकणगंपिव जायरूवा आदरिसफलगाविव पागडभावा कुम्मो इव गुतिंदिया पुक्खरपत्तं व णिरुवलेवा गगणमिव णिरालंबणा अणिलो इव णिरालया चंदो इव सोमलेसा सूरो इव दित्ततेया सागरो इव गंभीरा विहग इव सव्वओ

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