Book Title: Anandsiddhi Author(s): Ramnikvijay Gani Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_ View full book textPage 7
________________ 172 H શ્રી મહાવીર જૈન વિદ્યાલય સુવર્ણ મહોત્સવ ચર્થી इत्थंतरि आवहि अच्छराउ, पइ रणझणंतमणिनेउराउ / तिहि साहिलासदेवंगणाहिं, कंदप्पिदप्पि थिरजुव्वणाहिं। उवगृहिय विविहनेहेण गाढु, सो विलसइ रइसागरवगाढु / अणमिसनयणु मणकजसिद्धि, अमिलायमल्लु अक्खुडियरिद्धि / नितु नट्ट-गीय-पिक्खणविणोइ, कालं गमेइ सो सम्गि लोह / सिरिरयणसिंह सुगरूवएसि, सिरिविणयचंद तसु सीस लेसि / अज्झयणु पढमु इह सत्तमंगि, उद्धरिउ संधिबंधेण रंगि / जं इह हीणाहिउ, किंचि वि साहिउ, तं सुयदेवी मह खमउ / इह पढइ जु गुणइ, वाचइ निसुणइ, मुत्तिनियंबिणु सो रमउ // 9 // // इति श्रीवर्धमानप्रथमोपासकस्य श्री आणंदमहाश्रावकस्य सन्धिः समाप्त / / 70 अणमिस्यनयणु सा० // 71 °पेखणविणोइ सा० // 72 सीसिलेसि हे०॥ 73 मज्झ खमउ है / 74 जं पढत गुणतह, श्रवणि सुणतह, मुत्तिरमणि तं बरउ वर सा० सं० // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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