Book Title: Anandsiddhi Author(s): Ramnikvijay Gani Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_ View full book textPage 5
________________ ૧૭૦: શ્રી મહાવીર જૈન વિદ્યાલય સુવર્ણ મહોત્સવ સ્વસ્થ कालाइ अह नाणाइयार, संकाइय अह दसणइयार। अइयार अह चारित्तचारि, तव बार तिनि वीरियइयारि। पंचाइयार संलेहणाइ, जि विहिय कहवि मई इह पमाइ । वह बंध पमुह जं विहिय हिंस, जं जंपिय वयणं अलियमिस्स । जं थोव वि चोरिय कसु वि वत्थु, जं सेविउ मेहुण अप्पसत्थु । जं मेलिउँ परिगह पावमूलु, जं हिंडिउ दिसि जिम तत्त गोलु । जंपनरसकम्मादाण वत्त, बावीस अभक्खइ जं च भुत्त । जं अट्ट रुद्द झाइयउ झाणु, जं किद्ध पावउवएसदाणु । जं अप्पिउ ऊखेले-मूसलाइ, जं मज्झ जूयवइयर कयाइ । सामाइउ जं किउ साइयारु, जं खंडिउ देसवगास चारु । जं पन्चदिवसि पोसह न किडु, जं संविभागु अतिथिहि न दिद्ध । तं निंदउं गरिहउं तिविह तिविहुं, मिछक्कडु पुणु पुणु होइ सर्वेहु । हिंडंतह भवि भवि, आसंसार वि, जं खंडिउ जं च विराहियउ। तसु हउ समुंब्भडु, मिछादुक्कडु, गुरुसमक्खु तं गरहियउ॥६॥ जंगीय-नट्ट पिक्खणयसारु, कय देवपूय अप्पयारु । जं सेविउ गुरुजण भत्तिपुव्व, किउ वंदण-पडिक्कमणाइ सव्व । विहिपुव्व विहिय जं तित्थजत्त, आराहिय सत्तिहिं सत्त खित्त । जं भत्तिहि दिन्नउ मुणिहि दाणु, जं पालिउ सीलु वि गुणनिहाणु । जं बारभेउ तवचरणु चरिउं, जं भाविय भावण झाणु धरिउ । जं पढिउ गुणिउ सिद्धंततत्तु, आराहिउ दंसण अनु चरित्तु । जं धम्मकजि उवयरिउ एहु, मम संति मणु धणु वयणु देहु । इहजम्मि अन्नजम्मह पवंचि, अणुमोउं जं किय सुकिउ किंचि । नियकुलनहचंदु, इथ आणंदु, अणुमोएविण सुकिय किउ। सुहझाणह कारणि, भवह निवारणि, भावण भावई बारसु वि ॥ ७ ॥ भावण भावंतह सुद्धभावि, खणि खणि मुच्चंतह पुव्वपावि । संथारि निसन्नह महपमाणु, उप्यन्नु तासु अह ओहिनाणु । इत्थंतरि विहरतु नयरि गामि, तहिं समवसरिउ सिरिवीरसामी । ५१ मेलिवि सं०॥ ५५ सुबहु हं०॥ ५९ विहरितु हं० ॥ ५२ °ल-लंगलाई सा० सं०॥ ५३ जुवइ वइरं सा० सं०॥ ५६ ममुन्भडु हं० ॥ ५७ संतिय तणु मणु वयण सा० सं०॥ ५४ छड्डिउ हं० ॥ ५८ अणुमोयउं हं०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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