Book Title: Anandmanikya Rachit Navkhanda Parshvanath Fagukavya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ [46] मदन-महोरग-सुविषम, विष-मल-भरित-हदं / त्वं जिन-नायक मां प्रति, संप्रति दिश सुपदं // 18 क्रोध-दवानल-कीलित-, मीलित-नयन-युगं / कुरु वचनामृत-पोषण-, तोषणतः सुभगम् // 19 लोभ-प्रलोभक-वंचित-, लुंचित-धर्म-धनं / मामथ जिनवर पालय, लालय सर्व-दिनम् / / 20 काव्यम् त्वां येनाथ नुवंति सादरतया, निंदंति ये पापिनस्तेषां वांछित-संपदं च विपदं, घोरां ददासि स्फुटम् / नीरोगोऽपि गत-स्पृहोऽपि विगत-द्वेषोऽपि संगीयसे / विज्ञैश्चित्रमदोऽथवा हि महतां, माहात्म्यमीदृग्विधम् || 22 त्रिपदी शृंगार-सकला नारी सौभाग्य-सुंदरी रे, जाने वर-सुरी रे / अभिनव-यौवन-हरि-दरी रे // 23 कुच-भर-नमदंगी सुरंग-नीरंगी रे, प्रेम-पुष्प-शृंगी रे, विरचित-मृगमद-भंगी रे // 24 शील-शालि-सदाचारा सततमुदारा रे, सुधर्म-विचारा रे / जिन-गुण-गान-सुतारा रे // 25 आनंद-पूरित-बाला तव सुम-मालाभिः, विविध-विशालाभी / रचयति पूजां वर-कला रे // 26 काव्यम् एवं संस्तुति-गोचरं जिनवरं नीत्वा गुणैर्भासुरं, त्वां श्रीमन्नवखंड-पार्श्व सुतरामेकं तु याचे वरम् / देया मे गुरुराज हेम-विमलं त्वं सर्व-सौख्यास्पदं / ज्ञानं मान्यतमं महोदय-मना आनंद-माणिक्यदम् // 27 इति श्रीनवखंड-पार्श्व-स्तवनम् // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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