Book Title: Anand Pravachan Part 11
Author(s): Anand Rushi, Shreechand Surana
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

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Page 12
________________ आनन्द प्रवचन : भाग ११ अनुक्रमणिका ६०. अनवस्थित आत्मा ही दुरात्मा आत्मा को सदात्मा या दुरात्मा बनाना अपने हाथ में १, अनवस्थित आत्मा ही दुरात्मा बनता है ४, आत्मा की अनवस्थित दशा कब, अवस्थित दशा कब ? ५, अन्तरात्मा की साक्षी से कार्य करना अवस्थित दशा है ७, स्थिति के अनुसार कर्तव्य पालन अवस्थितता ८, स्वधर्म - पालन - अवस्थितता ६, चित्त की एकाग्रता से विशिष्ट ज्ञान-वामाक्षेपा का दृष्टान्त १०, अन्तःकरण की मलिनता ही दुरात्मा बनने का कारण ११, अनवस्थित आत्मा आध्यात्मिक और ब्यावहारिक दोनों क्षेत्रों में असफल — दृष्टान्त १४, दृढ़निश्चय सफलता का कारण १५, अनवस्थित व्यक्ति आत्महीनता के शिकार १६, अवस्थित आत्मा दृढ़संकल्पी १७, ६१. जितात्मा ही शरण और गति जितात्मा की व्याख्या १९, जितात्मा शब्द के विभिन्न अर्थ १६, जितात्माः पुरुषार्थ पर विजयी २०, संयम में पुरुषार्थं करने वाला विजितात्मा २१, जितात्मा ही शान्त २३, जितात्माः धैर्यं विजेता २४, जितात्मा : बुद्धि पर विजयी २८, जितात्माः स्वभाव विजेता ३०, स्वभाव बनाम आदत ३२, ६२. जितात्मा ही शरण और गति - २ जितात्मा : आत्मजयी ३४, आत्मा पर विजय पाने का अभिप्राय क्रोध आदि अध्यात्मिक दोषों पर विजय पाना ३६, आत्मविजय ३७, आत्म- दमन की परिभाषा ३८ जितात्मा अपने गुणों से परमात्मतत्व को जीतने वाला ३६, जितात्मा: शरीर, इन्द्रियों और मन को जीतने वाला ४१, मन के गुण और विषय ४२, मन ही सुख-दुख Jain Education International - १. - For Personal & Private Use Only १-१८ १६–३३ ३४—५६ www.jainelibrary.org

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