Book Title: Ambika on Jaina Art and Literature
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Bharatiya Gyanpith

Previous | Next

Page 154
________________ 12. अम्बिकाम्रलम्बीपाशालम्बिदक्षिणदोर्द्वया । सपुत्राङ्कुशवामदोर्द्वया सिंहवाहना।। Padmānanda-mahakavya: appendix Neminatha,57. 13. सा य भगवई चउब्भुआ दाहिणहत्थेसु अंबलुंबि पासं च धारेई। वामहत्थेसु पुण पुत्तं अंकुसं च धारेई। सिरिनेमिनाहस्स सासणदेवय त्ति निवसई रेवईगिरिसिहरे। Ambika-devi-Kalpa (61st chapter of Kalpa-pradipa), p. 107. सिंहारूढा कनकतनुरुग् वेदबाहश्च वामे, हस्तद्वंद्वेङ्कुशतनुभवौ बिभ्रती दक्षिणे च। पाशाम्रालीं सकलजगतां रक्षणैकार्रचित्ता, देव्यम्बा नः प्रदिशतु समस्तौघविध्वंसमाशु।। Ācāra-dinakara, Pt. II, 22, p. 177. सिंहारूढाम्बिका पीताम्रलुम्बिनागपाशकम्। अकुशं च भया (? तथा) पुत्रं तस्य (स्याः) हस्तेषु कारयेत्।। Rūpāvatāra (As quoted by U.P. Shah in his paper on the iconography of Jaina Goddess Ambikā, p. 159, fn. 4). 14. सिंहारूढाम्बिका पीता मुलंबि? (त्वाम्रक) नागपाशकम् । अंकुशंच तथा पुत्रं तथा हस्तेष्वनुक्रमात् ।। Rupa-mandana 6.19; also see, Devata-murti-prakarana, 7.61. 15. कुष्माण्डिनी कनककान्तिरिभारियाना, पाशाम्रलुम्बिसृणिसत्फलमावहन्ती। पुत्रद्वयं करकटीतटगं च (नेमि-) नाथ-क्रमाम्बुजयुगं शिवदा नमन्ती।। Mantrādhiraja-kalpa 3.64. 16. हरिद्वर्णा सिंहसंस्था द्विभुजा च फलं वरम्। पुत्रेणोपास्यामाना च सुतोत्सङ्गा तथाम्बिका ।। Aparăjita-prccă, 221.36. 17. Ambika-stavana(as appendix 20ofthe Bhairava-Padmavati-kalpa,p.95) 18. हस्तविन्यस्तसहकारफललुम्बिका, हरतु दुरितानि देवि जगत्यम्बिका । ___ (As quoted by U.P. Shah in his paper Iconography of Ambika', p. 150, fn. 3). 19. Ramachandran, T.N., Tirupparuttikkunram and Its Temples, Madras, 1934, p. 209. 20. Burgess, J., 'Digambara Jaina Iconography', Indian Antiquary, Vol. XXXII, 1903, pp. 463, pl. IV, fig. 22. 21. Bhairava-Padmavati-kapla, Appendices Nos. 16-19-21. 22. ...दुष्टसंचूर्णिनि! क्षद्रविद्राविणि! शत्रुसंचूर्णिनि! धार्मिका-रक्षिणि! देवि!... सष्टिसंहारकत्रि! दिव्ये! देवेन्द्रनागेन्द्रभूपेन्द्रचन्द्रस्तुते! ... Ambikă-tātanka (Appendix 18 of Bhairava-Padmavati-kalpa, p. 91) 23. कूष्पाण्डिके! हूँ नमो देवि! अम्बिके! ह्रः सदा सर्वसिद्धिप्रदे! अलं रक्ष रक्ष मां देवि! वादे, विवादे, रणे, कानने, शत्रुमध्ये, श्मशाने, अग्नौ, गिरौ, रात्रौ सन्ध्याकाले, विहस्तं, निरस्तं, नभःस्थं, निषण्णं, प्रमत्तं भयैर्व्याघ्रसिहैर्वराहैश्च रुद्धं तथा व्यालवेतालभूपालभीतं, ज्वरेणाभिभूतं, कृतान्तेन नीतं, नरेण उक्तं नरैराक्षसैदेवि! अम्बालये! त्वत्प्रसादात् शान्तिकं, पौष्टिकं, वश्यमाकर्षणं, स्तम्भनं, मोहनं, दुष्टसंचूर्णनं, धार्मिकारक्षणम्। Ambika-tatanka (Appendix 18 of Bhairava-Padmavati-kapla, p. 91). jinaprabha Suri invokes her as the remover of obstacles (निवारेइ विग्धसंघाय) and bestower of rddhi-siddhi (दीसंति अणेगरूवाओ रिद्धिसिद्धीओ). Ambika-devi-kapla (61st chapter of Kapla-pradipa, p. 107-08). 140 Ambikā

Loading...

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184