Book Title: Ambika on Jaina Art and Literature
Author(s): Maruti Nandan Prasad Tiwari
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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अत्र स्तुतौ गुप्तीकृतो मन्त्रस्त्वेवम्ॐ ह्रीं अम्बिके! ह्रां ह्रीं ह्रां ह्रीं क्लीं ब्लू सः क्ल्ह्रीं नमः । (From Bhairava-Padmavati-kalpa: Appendix 17, p. 90.)
(iii) अम्बिकाताटङ्कम्
सिंहारूढा सुतयुगविभूषिता कम्रनम्रमध्यगता । साऽम्बा देवी तीर्थाधिवासिनी हरतु मम दुरितम् ।।१।। ___ ॐ ह्रीं जय जय परमेश्वरि! श्रीअम्बिके! आम्रहस्ते! महासिंहयानस्थिते! किङ्किणीनूपुरक्वाणकेयूरहाराङ्गदानेकसझूषणैर्विभूषिताङ्गे! सर्वसल्लक्षणैर्लक्षिताङ्गे! जिनेन्द्रस्य भक्ते! कले! निष्कले! निष्प्रपञ्चे? महाग्रानने! सिद्धगन्धर्वविद्याधरेन्द्रार्चिते! मन्त्रमूर्ते! शिवे! शङ्करे! सिद्धिबुद्धिधृतिकीर्तिकान्तिविस्तारिणि! शान्तिनिधितुष्टिहृष्टिप्रिये! शोभने! सुप्रहासे! जरे! जम्भिनि! स्तम्भिनि! मोहिनि! दीपनि! शोषणि! त्रासि ! मोटिनि! भञ्जिनि! दुष्टसञ्चूर्णिनि! क्षुद्रविद्रावणि! शत्रुसञ्चूर्णिनि! धार्मिकारक्षिणि! देवि! अम्बे! महाविक्रमे! भीमनादे! सुनादे! अघोरे! सुघोरे! सुरौद्रे! सुरौद्रानने! चण्डिके! चण्डरूपे! सुनेत्रे! सुवको! सुगात्रे! पवित्रे! नमन्मध्यभागे! जयन्ति! जयन्ताकुमारि! त्रैपुराङ्गि! गौरि! गान्धारि! गन्धर्वि! यक्षेश्वरि! ॐ कालि! कालि! महाकालि! योगेश्वरि! जनमार्गस्थिते! सुप्रशस्ते! धनुर्बाणदण्डासिचक्राम्बुजानेकशस्त्रोदिते! सृष्टिसंहारकत्रि! दिव्ये! देवेन्द्रनागेन्द्रभूपेन्द्रचन्द्रस्तुते! सुवर्णे! पवित्रे! महामूलविद्यस्थिते! ॐ वषट्कारस्वाहाकारस्वधाकारहींकारकेंकारबीजान्विते! दुःखदारिदयदौ
र्भाग्यनिर्णाशिनि! लक्ष्मीधृतिकीर्तिकान्तिविस्तारिणि! ह्रीं नमो यक्षेश्वरि! ह्रीं देवि! कूष्पाण्डिके! हूँ नमो देवि! अम्बिके! हृः सदा सर्वसिद्धिप्रदे! अलं रक्ष रक्ष मां देवि! वादे विवादे रणे कानने शत्रुमध्ये श्मशानेऽग्नौ गिरौ रात्रौ सन्ध्याकाले विहस्तं निरस्तं नभःस्थं निषण्णं प्रमत्तं भयैर्व्याघ्रसिंहैर्वराहश्च रुद्धं तथा व्यालवेतालभूपालभीतं ज्वरेणाभिभूतं कृतान्तेन नीतं नरेण उक्तं नरैराक्षसैर्देवि! अम्बालये! त्वत्प्रसादात् शान्तिकं पौष्टिकं वश्यमाकर्षणं स्तम्भनं मोहनं दुष्टसञ्चूर्णनं धार्मिकारक्षणम्। (From Bhairava-Padmavati-kalpa, Appendix 18, p. 91.)
(iv) अम्बिकाताडंकम्
पठेत् स्मरेत् त्रिसन्ध्यं यो भक्त्या जिनपशासने! सम्प्राप्य मानुषान् लभते लभते सुभगां गतिम् ।।
150 Ambika
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